शिक्षकों को शिक्षा की जरूरत

कटाक्ष-

निखट्टू

संतों... हमारे देश में पहले गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करने का प्रचलन था। वहीं जाकर लोग वेद, आयुर्वेद, उपनिषद, अस्त्र- शस्त्र संचालन, व्याकरण, ज्योतिष और खगोलशास्त्र की शिक्षा ग्रहण किया करते थे। वहां रहने वाले गुरुजन इन छात्रों को नि:शुल्क ये शिक्षा दिया करते थे। जंगल का कंदमूल खाकर वहां बच्चे गुजारा करते थे। यह काल इनका ब्रह्मचर्य काल होता था। इसके बाद वहां से वापस आते थे तो इनका उपनयन संस्कार होता था। यही लोग आगे चलकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते थे और एक संस्कारी नागरिक बनते थे। समय बदला, शिक्षा बदली, लोग बदले, तरक्की भी खूब हुई। जिन गुरुजी को कभी अल्पतम पैसे बतौर दक्षिणा मिलते थे। उन्हीं को आज सातवां वेतनमान मिलने लगा। तो शिक्षा का स्तर इतनी तेजी से गिरा कि अब संभाले नहीं संभल रहा है। आलम ये है कि 85 फीसदी बच्चों को तो  जोड़ और घटाना तक नहीं आता। शिक्षा विभाग अपने विकास का राग लगातार अलापे ही जा रहा है। आठवीं के छात्रों को ठीक से 20 तक पहाड़ा भी नहीं आता। और तो और बीए के छात्र-छात्राओं को एक पन्ने ढंग से न तो हिंदी लिखनी आती है और न ही अंग्रेजी। व्याकरण की तो बात ही छोड़ दीजिए। कुछ अल्पज्ञों ने खुद को सर्वज्ञ साबित करने के लिए ये सब नाटक रच डाले। शर्मनाक बात तो ये है कि देश के शिक्षामंत्री ने भी देश के पहले प्रधानमंत्री को फांसी दी गई थी जैसा गैरजिम्मेदाराना बयान दे डाला। तरस आता है ऐसे शिक्षामंत्री पर। तो वहीं राज्य के शिक्षामंत्री की पत्नी की परीक्षा उनकी तथाकथित साली दे रही थी। अब के गुरुजी ट्यूशन पढ़ाते हैं और पालकों की जेब का लाखों रुपए महीना झटकते हैं। चेले इन पर चटकते हैं,गुरुजी के आगे पीछे मटकते हैं। गुस्से में गुरुजी हाथ पैर पटकते हैं। कहीं अकल तो कहीं नकल के बल पर करवाते हैं चेलों को पास। अब ऐसे लोग तरक्की क्या करेंगे घास? गलतियों से भरी पड़ी हैं कोर्स की किताबें। दिनोंदिन वजन होता जा रहा है बच्चों का बस्ता। ढोते -ढोते बच्चों के पालकों की हालत है खस्ता। ये बात हमारी समझ में नहीं आती हुजूर कि बच्चों को आखिर क्यों बनाने पर तुले हैं मजदूर। जो बच्चा इतनी कम उम्र में आठ किलो  का बस्ता उठाएगा वो जवानी में भला क्या कर पाएगा? यही बात जब मैं सातवां वेतनमान लेने वाले एक श्रीमान को समझाने गया तो उनका गुस्सा भी सातवें आसमान पर चढ़ गया। जरा सी बात पर काट कर बच्चे को पकड़ा दी टीसी, और वहीं रसूखदार के बच्चे के आगे निकाल रहे थे बत्तीसी, क्योंकि उसके ही बच्चे को ट्यूशन पढ़ाते हैं... समझ गए न सर.....  तो अब हम भी निकल लेते हैं घर कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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