एक क़ता

एक क़ता
देखो तो मुझे खुद से कैसे बाँट रहा है।
खाता है नमक फिर भी लहू चाट रहा है।।
                  जिसको उठाके बीहड़ों से घर में दी जगह।
                  वो पालतू कुत्ता ही मुझे काट रहा है।।
--- कपूत प्रतापगढ़ी

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव