चरित्र खोजने निकले हैं लोग

अजीब पागल लोग हैं ये ! आज चश्मा लगाकर चरित्र खोजने निकले हैं। इनको लगता है की देश के कानून की तरह इसको भी खरीद लेंगे मगर अफ़सोस की वे आश्रम अब बंद हो चूका हैं जहां इनकी खैरात बंटती थी। बाकी की रही सही कसर तो सरकार ने पहले ही पूरी कर दी थी। अब अचानक जरूरत पडी तो इनको याद आया चरित्र ? अरे भाई साहब जो चीज अब उँगलियों पर गिनने भर के लोगों के पास बची है उसको इतनी बड़ी मात्रा में कहाँ से लाओगे? और करो शिक्षा में परिवर्तन? और पढ़ो पश्चिम का इतिहास? अभिज्ञान शाकुंतलम जैसे नाटकों को आज विश्व की तमाम भाषाओँ में अनुवादित किया गया और दुर्भाग्य का विषय है की उसको भी इन तथाकथित विद्द्वानों ने आउट डेटेड करार देकर कोर्स से हटा दिया। रामचरित मानस की चौपाइयां भी गायब कर दी गईं। लो अब भोगो-- वरना उसमें तो स्पष्ट रूप से लिखा है कि --
अनुज बधू भगिनी सूत नारी,सठ सुनु कन्या सैम ये चारी।
इनहि कुदृष्टि बिलोकी जोई, ताहि बढे कछु पाप न होई।।
अर्थात - छोटे भाई की पत्नी छोटी बहन पुत्र की स्त्री ये तीनों ही अपनी बेटी के सामान होती हैं जो भी इन पर कुदृष्टि डालता है उसका वध करने से कोई पाप नहीं लगता है।

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