आह और कराह को मेरी ये सलाह

अजीब बात है ! एक डेढ़ सौ रुपये रोज कमाने वाले मजदूर पर हम जमकर निगाह रखते हैं और जरूरत पड़ने पर जमकर फटकारते भी हैं. ज्यादा तीन-पांच किया तो कह देते हैं की कल से मत आना ! मगर जिसको लाखों रूपये महीने की तनख्वाह और ढेरों सुखा सुविधाएँ देते हैं वो उलटे हमीं को दुतकारता है. बोलने पर लतियाता भी है. यहाँ तक की हमारी आवाज तक को अनसुना कर देता है. लगता है उसे लोक की आवाज सुनाई ही नहीं देती , या फिर जान बूझ कर अनसुना करने की आदत डाल चुका है.
ऐसे में अब बारी आपकी है जब वो आपके दरवाजे पर हाथ जोड़े पांच इंच का मुंह फैलाए बड़ी बेशर्मी से खडा होगा. तकाजा तो यही है की आप भी उसकी बात अनसुनी कर दें. अरे जब देश का पैसा लेकर जो आदमी ठीक से काम नहीं करता हो ऐसे निकम्मे आदमीं को हम जिम्मेदारी क्यों दें? जो लोग पांच साल से आह और कराह भर रहे हैं उनको मेरी ये सलाह है! अब आपलोग भी चुप्पी मार लीजिये. क्योंकि जिस भाषा में सवाल हो उत्तर की भाषा भी वही होनी चाहिए .... जय हिन्द .. जय भारत.

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