दैनिक का पत्रकार बताकर वसूली

पत्रकारिता किस दौर से गुजर रही है इसका उदहारण आज एक घटना ने दिखाया। एक पत्रकार खुद को किसी ऐसे दैनिक का पत्रकार बताकर वसूली कर रहा है जो काफी पहले यहाँ से बंद हो चुका है। इसकी शिकायत एक पीडिता ने की .उस भद्र महिला को ये शख्स लगातार प्रताड़ित करता आ रहा है। पैसे नहीं देने पर किसी दूसरे अखबार में उसके खिलाफ मनगढ़ंत  खबरें छपवाता है। अरे ये तो कुछ भी नहीं तकरीबन तीन साल पहले जब मैं प्रोविंशियल  डेस्क पर काम करता था तो मेरे ही समाचार पत्र के एक हाकर  यानि रिपोर्टर ने मेरे ही भैया से उनकी  जमीन  को आदिवासी की बताकर खबर छपने की धमकी देकर 5 हजार रुपये की मांग की। जब उन्होंने पूंछा की किस अखबार से हो तो उसने उसी अखबार का नाम बताया जिमें मैं प्रोविंशियल डेस्क पर काम करता था। तो मेरे भैया का भी साहस बढ़ गया उन्होंने उसे बताया की वहाँ मेरा भाई काम करता है। आश्चर्य, नाम बताने पर उसने एक भद्दी सी  गली दी और कहा की मैं उसको देख लूंगा। इसकी शिकायत जब एडिटोरियल डिपार्टमेंट में की गई तो वहाँ से कुछ भी नहीं किया गया। बाद में मैंने उसके बॉस को व्यक्तिगत रूप से अपना परिचय दिलाया तो वो रुक। सवाल तो ये उठाता है कि क्या प्रेस कार्ड रख लेने  से कोई पत्रकार हो जाता है? और अगर इसी तरह की उगाही  लोगों से की जाती रही तो उनकी इस चौथे स्तम्भ में क्या आस्था रह जायेगी। मीडिया हाउसेज को चाहिए की वो भाषा और शैली सुधारने से ज्यादा इस बात पर ध्यान दें, मीडिया का कल्याण होगा। वरना वो दिन दूर नहीं जब कोई खुद को पत्रकार बताने से परहेज करेगा।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव