बयानवीरों की संसद में तूती

हैदराबाद विस्फोट के बाद अब बयानवीरों की संसद में तूती  बोल रही है। हर कोई देश की जनता की हमदर्दी बटोरने के लिए कड़ी दिखा रहा है। गृहमंत्री को दोषी बताया जा रहा है और वो हैं भी।सवाल ये है की जब भी सांसदों और अधिकारीयों के वेतन और भत्तों को बढाने की बात आती है तो वो तो इनको अमेरिका और ब्रिटेन के बराबर चाहिए? मगर जैसे ही जिम्मेदारी की बात आती है तो उसको लेने के लिए कोई भी तैयार नहीं दिखता। सीधी से बात ये है की देश के खजाने से अगर पैसे लेते हो तो इमानदारी से ड्यूटी भी करों वर्ना घर ही रहो। अब बहुत  हो चुकी ये बयानबाजी की नौटंकी। जनता को अब धरातल पर दिखने वाला काम चाहिए संसद में कोरी बकवास नहीं। जिनको संसद का पिछला सत्र याद होगा इन्हीं लोगों ने संसद में लोकपाल को लेकर कहा था की कानून बनाना संसद का काम है किसी आम आदमी को ये हक नहीं दिया जा सकता। जैसे ही कोई इनके ऊपर प्रहार करता है तो सभी दल एक होकर एक सुर में बोलने लगते हैं। आज संसद में कोई भी ये नहीं बोल कि मैं इस हमले में प्रशासन की विफलता की जिम्मेदारी लेता हूँ? अगर कोई देश की सुरक्षा और आम अवाम की सुरक्षा का जिम्मा नहीं ले सकता तो फिर उसे ये भी मान लेना चाहिए की वो देश के खजाने पर कुण्डली मार कर बैठा हुआ एक सांप है और उसको तुरंत अपने पद से स्तीफा दे देना चाहिए।

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