ये दोगली नीति आखिर कब तक?

जब तक जियो सुख से जियो, कर्जा लेकर खूब घी पियो की राजनीति कर रही केंद्र सरका। इनको सिर्फ चिन्ता है पूंजीपतियों की, इनको चिंता है अपने वोट बैंक की, इनको चिंता है अपने बच्चों के भविष्य की, मगर इनको देश पर बढ़ रहे विश्व बैंक के कर्ज की परवाह कतई  नहीं है। देश के उन कुपोषित बच्चों, बीमार बुजुर्गों, दवाओं के लिए करह रहे गरीबों और असहायों, कचरा चुन कर परिवार का भरण-पोषण करने वाले मासूम बच्चों जिनकी जिन्दगी शुरू होने के पहले ही ढलनी  शुरू हो जाती है।जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए था वे गरीबी के कारण ढाबों पर बर्तन धो रहे हैं।
किसान आत्म हत्या को मजबूर हो रहे हैं। मगर इन सब के बाद भी देश की सरकार बड़ी बेहयाई से दांत निपोर कर कहती है की हम विकास कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये है की आखिर इस देश के लिए क्या जरूरी है - जनता को रोटी या फिर वीवीआईपी हेलीकाप्टर ?चीन और पाकिस्तान से खुद को घिरने से बचाना या फिर कोरी बयानबाजी? समझ में नहीं आता कि आखिर चीन के खिलाफ बोलने में इनकी जुबान हालक ,में क्यों अंटक जाती है? उद्द्योगपतियों को सुविधाओं के अम्बारों के नीचे ढँकने  वाली सरकार का समुद्र किसानों के नाम पर आखिर सूख क्यों जता है? ये दोगली नीति आखिर कब तक?

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