सस्ती लोकप्रियता हासिल कारने का मंत्र

यह कोई नई बात नहीं है कि राज ठाकरे ने विधान सभा भवन में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान हिंदी में शपथ लेने वाले को अपने पालतू गुंडों से पिटवाया, बल्कि उसे पीटने वालों को सम्मानित भी करवाया गया। शिवसेना के महानायक बालासाहब ठाकरे ने भी उन्हीं का अंधा अनुकरण करते हुए सचिन को चुनौती तक दे डाली।

ठीक तीन दशक पहले यही काम उत्तर प्रदेश में मायावती ने किया था। जब उन्होंने महात्मा गांधी को शैतान की औलाद कहकर विवाद खड़ा कर दिया था। उस समय भी इसकी खूब निंदा हुई थी। लेकिन दोनों ही घटनाओं के पीछे उद्देश्य एक ही है। सस्ती प्रसिध्दि पाना। बाद में माफी मांगकर मामले को रफादफा करना तो परंपरा बन गई है। किसी को सभा में जमकर पीट लेने के बाद गली में जाकर हाथ जोड़ लेना। इनकी फितरत बन गई है। यह सिर्फ घटिया राजनीति के कुछ टेलर हैं असली फिल्म तो अभी बाकी है। क्योंकि अब लोग यह भूलते जा रहे हैं। कि हम त्यागवादी भूमि पर निवास करते हैं। जहां हमारे आदर्श होते हैं हम जिनका अनुकरण करते हैं। तो कहीं न कहीं आने वाली पीढ़ी में कोई और राज ठाकरे से भी क्रूर व्यक्ति पैदा हो जाए। इसमें किंचित संदेह नहीं होना चाहिए।
बड़े भाई हुल्लड़ मुरादाबादी की ये पंक्तियां बिल्कुल प्रासंगिक हैं कि:-

देश को यह राजनीति पाप तक ले जाएगी।
या घुटन के रास्ते संताप तक ले जाएगी।।

गर यही हालत रहे तो चंद वोटों के लिए ।
सभ्यता खुद को पकड़कर सांप तक ले जाएगी।।

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