पतन का एहसास

शहर के धनकुबेर दौलतराम धाकड़ चंद ने मुझे बताया कि मह्यं हेहर हिन्दी दैनिक के नाम से एक अखबार निकाल रहा हूँ। जिसके संपादक आप होंगे। सुनते ही जीवन में पहली बार मुझे अपनी विद्वत्तता पर गर्व होने लगा। मेरा मन कल्पना के आकाश में सूर्यकिरण विमानों की तरह कलाबाजियां खाने लगा। देखते ही देखते शहर के तमाम थेथर पत्रकारों के लम्बे चौडे व्यौरों वाले आवेदन आने लगे। जो कभी मेरे प्रणाम का उत्तर तक नहीं देते थे। वे साष्टांग दण्डवत करने लगे। पहली बैठक में मैंने पिछले दरवाजे से चयनित संवाददाताओं को बुलाया। बैठक में जैसे ही हिन्दी में समाचार लेखन की बात आई। तो कुछ पत्रकारों ने दी अंग्रेजी की दुहाई। कुछ ने पत्रकारिता की अलग भाषा की वकालत की। भाषा का मापदण्ड तय करते -करते अचानक बात इतनी बिगड़ी कि पता नहीं कब बाहर छिपाकर रखे दण्ड और पादुकाएं हॉल में चलने लगीं। पूरा हॉल महाराष्टÑ का विधान सभा भवन बन गया। इस आकस्मिक संकट में मेरी उपस्थित बुध्दि काम आई। सेठ जी को आलमारी में बंदकर, मैंने शौचालय में छिपकर अपनी जान बचाई। जब हॉल में पसर गया सन्नाटा तब मैंने शौचालय को कहा बॉय-बॉय टाटा। वहां का दृश्य रंगीन था, मेरे 25 संवाददाताओं में से 16 घायल और 9 बेहोश थे। यह देख मेरा संयम थोड़ा डोला। मैंने बेहोश पडे साथियों की नब्ज टटोला। घायलों को पिछले दरवाजे से नर्सिंग होम भेजवाया। बेहोश पड़े, सदमाग्रस्तों पर मिनरल वाटर का छिड़काव करवाया। जिनके थोबड़े सूज आए थे, उनकी फोटो फाइल से तथा बेहोश साथियों की ओरिजनल फोटो लगी विज्ञप्ति जारी करवाया। जिसमें बैठक को सफल बताया।

हालांकि उनके प्रथम दर्शन और प्रदर्शन से भारतीय पत्रकारिता पर क्या असर पड़ा यह सोचकर मेरा अंतर्मन बहुत रोया। रात को जब मैं सोया तो गणेश शंकर विद्यार्थी ने मुझे दुत्कारा, विष्णुकांत शास्त्री ने धिक्कारा, हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मुझे घसीटा,प्रभाष जोशी ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। जब इससे पहले के पत्रकारों व संपादकों के बारे में पूंछा तो पता चला कि वे मेरी इस हरकत से पीड़ित होकर आत्महत्या करने चले गए हैं। वहीं चौथास्तंभ अपने चौथेपन पर सुबक-सुबक कर रो रहा था। यह देखकर मेरा सिर जोर से चकरा गया। मह्यं धड़ाम से चौकी से नीचे आ गया। इस गिरने के क्रम ने मुझे मेरे पतन का तो एहसास करा दिया। लेकिन मेरे भाइयों को भगवान जाने कब इसका एहसास होगा। अंत में मह्यं तो यही कहना चाहता हूं कि —

गुनहगारों में शामिल हूं गुनाहों से नहीं वाकिफ।
सजा तो जानते हैं हम खुदा जाने खता क्या है।।

Comments

गुनहगारों में शामिल हूं गुनाहों से नहीं वाकिफ।
सजा तो जानते हैं हम खुदा जाने खता क्या है।।nice
Bakait said…
bahut accha hai aur fresh bhi padhkar acchi anubhuti huyi

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