ग़ज़ल

परिंदा आस का देखो उड़ान छोड़ गया !
आख़िरी संग भी जैसे ढलान छोड़ गया !!
जिन्हें समझे थे आकाए-आशियाना यहाँ !
कल वही शख्स ही अपना माकन छोड़ गया !!
शेर तो आया था मरने के वास्ते लेकिन !
इस से पहले ही शिकारी मचान छोड़ गया !!
अकब में आग का दरिया है सामने जंगल!
किस इम्तहां में मेरा मेहरबान छोड़ गया !!
"कपूत "उस काली हवेली में न जाने क्या था !
कि जो भी ठहरा वो आख़िर ईमान छोड़ गया !!

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