एक छंद

पानी में पड़े मगर न धुआं दे उबाल खाए ,
फेंकिये निकाल के तुरंत ऐसे चून को ।
रक्षा न गरीब की हो दुष्टों को न दंड मिले ,
आग में जला देन मित्र आप उस कानून को ॥
दोस्ती का हाथ तो बढ़ाये चले जा रहे हैं ,
देख नहीं पा रहे हैं उसके नाखून को ।
घाटियों की चीख पे उबाल खा न आँख चढ़े ,
मेरा है प्रणाम ऐसे नेताजी के खून को ॥

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