बिलबिलाते कीड़ों वाला अमृत

कटाक्ष-

निखट्टू
कानून सिर्फ सुबूतों की भाषा समझता है। उसको सुबूत देने का काम और सुबूतों की तहकीकात कर जिम्मा पुलिस को है। ऐसे में कानून तो वहीं सुनेगा जो पुलिस उसके कान में कहेगी। ठीक यही चीज आजकल सत्ता के गलियारों में भी लागू होती है। केंद्र सरकार वही सुनेगी जो राज्य सरकार कहेगी। और सीधी भाषा में बात करें तो प्रधानमंत्री वही सुनेंगे जो मुख्यमंत्री कहेंगे। अब ये मुखिया कितना सच दिल्ली जाकर बोलते हैं ये तो भगवान ही जाने। यहां राज्य सरकार का अमृत पीकर बच्चे मर रहे हैं, तो कहीं-कहीं उल्टियां कर रहे हैं। हमारी विद्वान महिला एवं बाल विकास मंत्री उसी दूध को अमृत बता रही हैं। अभी कल की ही तो बात है। उसी अमृत के पैकेटों में कीड़े बिलबिलाते मिले। अब ऐसा अमृत कौन अभिभावक अपने बच्चे को पिलाना चाहेगा? सरकार उसी दूध को सुगंधित, पौष्टिक और मीठा बताकर बच्चों को पिलाती आ रही थी। अब तो राज्य के कुछ जिलों में आलम ये है कि बच्चे सरकारी अमृत देखते ही आंगनबाड़ी केंद्रों से भाग निकलते हैं। आंगनबाडिय़ों में बचती हैं सिर्फ आंगनबाड़ी सहायिकाएं और कीड़े बिलबिलाता सरकारी अमृत। हमारी तो अगर कोई मानता तो हम तो यही कहते कि भैया इस दूध को सीधे विधानसभा के दरवाजे पर ले जाकर उड़ेल दो। अभी सत्र भी शुरू होने वाला है। ऐसे में वहां सुगंध रहनी निहायत जरूरी है। इससे कुछ बचे तो सार्वजनिक तौर पर प्रदेश के मंत्रियों को वही दूध पिलाया जाए, क्योंकि सबसे ज्यादा दिमागी कमजोरी के शिकार यही लोग हैं। ऐसा करने से बस कुछ ही दौरों में ये मंत्री जाएंगे सुधर। तो आप बनाइए इसकी योजना और हम निकल लेते हैं अपने घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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