कथा-व्यथा मंत्रालय

-कटाक्ष-

निखट्टू
राजधानी में बाबाओं की तूती बोल रही है। आलम ये है कि आम जनता की तो बात ही छोड़ दीजिए। तमाम एनजीओ भी इस काम को हाथों-हाथ ले रहे हैं। बाबा दिल्ली के हों या फिर मुंबई के इवेंट कंपनियां उन्हीं की आड़ लेकर जमकर खिलवाड़ रही हैं। इस कथा में कुछ ऐसी भी कंपनियां हैं जो ये बताती हैं कि वे सेमी गवर्नमेंट संस्थान हैं। बाकायदा सारा कुछ उनके यहां नियम कायदे से चलता है। अब मुझ जैसी मोटी बुध्दि के आदमी को कोई ये नहीं समझा पा रहा है कि नरेंद्र मोदी को आखिर इस काम के लिए भला सेमी गवर्नमेंट संस्थानों की क्या जरूरत आन पड़ी जब उनके हाथ में पूरे देश का पॉवर है? अरे एक मंत्री और बढ़ा देते तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता? मंत्रालय का नाम दे देते कथा- व्यथा मंत्रालय। अब आप सवाल करेंगे कि ये कथा के बाद मैंने व्यथा शब्द क्यों जोड़ा? तो भाई साहब जैसे सरकार ने उस धार्मिक काम से इवेंट कंपनियों और सेमी गवर्नमेंट संस्थानों को जोड़ रखा है। तो ये संस्थान कथा के बाद बाजार के तमाम लोगों को व्यथा देकर धीरे से अपना कार्यालय मकान मालिक को हैंडओवर कर रातों-रात दिल्ली या मुंबई शिफ्ट हो लेते हैं। यानि कथा होने के बाद न तो बाबा का पता मिलता है और न आयोजकों का। अलबत्ता जहां इनका तथाकथित कार्यालय बनाया गया रहता है वहां तकादे के लिए लोग जरूर आने लगते हैं। इनमें कुछ गुस्से से खुद बाउंस होते रहते हैं तो कुछेक को दिया गया चेक बैंकों में बाउंस हो गया रहता है। अब अगर कोई इन लोगों की व्यथा सुन ले तो कसम से उस कथा में तो जल्दी न जाए। अक्सर बाबा के जाने के बाद ऐसा शोर-शराबा देखने को मिलता है। बड़े-बड़े बजट की कथाओं में ऐसी व्यथा झेलने वाले व्यापारियों की तादाद भी खासी ज्यादा होती है। इस लिए अगर कथा-व्यथा मंत्रालय बन जाएगा तो उससे लोगों का बड़ा भला होगा। तो आइए करें ऊपर वाले से दुआ कि इस बार जो हुआ सो हुआ मगर अगली बार कथा-व्यथा मंत्रालय जरूर बनाए सरकार.... तब तक के लिए नमस्कार......क्या कहा कुछ भूल रहे हैं अरे हां भाई उम्र का है असर तो आज्ञा दीजिए क्योंकि जाना है मुझको भी घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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