सदन में शयन

कटाक्ष

-निखट्टू
संतो...जागत नींद न कीजै। किसी बहुत पुराने कवि ने कहा था कि आलस और निद्रा किसान का नाश करती है। चोर का खांसी, हंसी-खुशी सन्यासी और ब्राह्मण का नाश दासी कर देती है। ऐसे में सोना कितना खतरनाक हो सकता है आप समझ गए होंगे न? और वहीं अगर कोई संसद में सोए तो?
सदन चाहे नगरीय निकायों का हो या विधान सभाओं अथवा देश की संसद का, वहां तमाम महत्वपूर्ण कार्य होते हैं। यहां रोना-धोना तो कई बार हुआ मगर सोना शायद इससे कम बार ही होता हुआ दिखा। जब कोई आराम से वहां भी नींद ले रहा हो। इस मामले में देश के कुछेक बूढ़े लोगों और कुछ राष्ट्रीय पार्टियों के अध्यक्ष ही अब तक आगे थे। तो वहीं एक युवा नेता भी कई बार संसद में सोते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कैमरे में कैद हुए । अच्छा एक बात मेरी मोटी बुध्दि में ये नहीं आती कि भला संसद में कोई क्यों न सोए? आखिर बाहर ही कौन सा सागौन का पेड़ उखाड़ ले रहे हैं ये नेता? क्विंटल भर का नाम मगर तोले भर का काम नहीं। अब जब देश की सबसे सस्ती खाने की चीजें और अच्छी प्रजाति के बासमती चावल से बनी बिरियानी और दबा कर पकौड़े पेट में गए हों, और एसी चल रही हो। तो ऐसे में भला किसको नींद  नहीं आएगी। इसको लेकर इतनी हाय तौबा मचाने की आखिर क्या जरूर है? आखिर देश के सबसे बड़े सियासी खानदान के चश्म-ओ-चरा$ग हैं वो। बड़ी पार्टी के उपाध्यक्ष हैं। ऊपर से सांसद भी तो भला अब नहीं सोएंगे तो कब सोएंगे? जो जग रहे थे उन्होंने ही भला कौन सा भाला मार दिया? सिवाय हो हल्ला मचाने के? अब अगर कोई ऐसे माहौल में शांति की कामना करता हो तो वो भला सोए न तो क्या रोए? बिना काम के लोग पीटने पर उतारू हो रहे हैं कुछ लोग अपना सर...... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी, तब तक के लिए जय...जय।

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