बरी होने पर खरी-खरी

कटाक्ष-

निखट्टू
गांवों में एक कहावत है कि बकरे की जान गई खाने वाले को स्वाद नहीं आया। ठीक यही हुआ जोधपुर के चिंकारा कांड में। सारे सुबूत और दलील एक तरफ और दूसरी तरफ सुपर स्टार। कोई बता रहा गोली गलत तो कोई कह रहा है कि चाकू में नहीं थी धार। देश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए डूब मरने की बात है कि 18 साल में भी सुबूत नहीं जुटा पाईं? सारे लोग अपना-अपना वेतन लिए और रिटायर्ड हो गए। हिरनों का कबाब खाकर लोग पूरे देश के मंचों पर धमाल मचाते रहे। 18 साल तक मुकदमा लडऩे वाले मुद्दई को अदालत से मिलती रहीं सिर्फ तारीखों पर तारीखें और आखिरकार आज मिली हार। इसके बाद भी प्रशासन सबके लिए समान कानून की बात करता है? इतने सालों तक वकील का एक भी तर्क नहीं चला और माननीय अदालत ने सुना दिया फैसला?
गजब है हमारे देश का कानून- बेजुबानों का बयान सुनना चाहता है? सवाल तो ये भी है कि जो पांच कारण बताए गए हैं कुल मिलाकर कानून को सिर्फ बरगलाया गया है। ऐसा कोई ठोस प्रमाण ही नहीं दिखाई देता जिसके बल पर सलमान खान को बरी किया जाए। इससे एक बात तो साफ हो गई कि देश में दो तरह का नहीं कई तरह का कानून चलता है। नेताओं के लिए एक- मंत्रियों के लिए अलग, किसी पार्टी के सुप्रीमों के लिए अलग और हीरो के लिए अलग तो मंत्री-प्रधानमंत्री के लिए अलग। इसमें सबसे कठोर कानून है गरीबों और असहायों के लिए। कमजोर, बेबस- और बेसहारा लोगों के लिए। अगर इन्हीं हिरणों को किसी गरीब ने मारा होता तो वन विभाग की पूरी टीम बेंत से पीट-पीटकर उसकी खाल निकाल लेती। उसके बाद उसको ले जाकर तत्काल बंद कर दिया जाता। जमानत का तो सवाल ही नहीं उठता अरे मामला दुलर्भ प्रजाति के हिरणों का जो ठहरा। थोड़ा और कुछ होता तो दो चार दर्जन संस्थाएं धरने पर बैठ जातीं। अभी तक वो गरीब सजा काटकर छूटता भी या नहीं, मगर उनका क्या? अरे वे बड़े आदमीं हैं। तो उनके लिए तमाम नियम कायदे आराम से टूट गए और साहब बाइज्जत छूट गए। अच्छा तो तब होता जब राजस्थान सरकार उनको दस-बीस काले हिरण बतौर उपहार दे देती कि सरकार ले जाओ और आराम से मुंबई में इनको ज़बा करके कबाब बनाकर खाना अच्छा लगेगा। इससे एक बात तो पक्की है कि अब खत्म हो जाएगा पैसे वालों का डर.....और यही चीज वन्यजीवों पर टूटेगी बनकर कहर। क्या करेंगे हम और क्या कर सकते हैं सर....तो फिर अब निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।
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