दाई के बादाम का हलवा

कटाक्ष-

निखट्टू-
एक सड़क पर फटे पुराने चीथड़ों में लिपटी बुढिया बड़े ठाट से फुटपाथ पर बैठी थी। बड़ी ही खुशी के साथ वो अपने एक हाथ को दूसरे हाथ की हथेली से छुआ कर अपने मुंह के पास ले जाती। फिर ऐसे मुंह हिलाती गोया कोई बहुत स्वादिष्ट व्यंजन खा रही हो। उसके चेहरे पर संतुष्टि भी साफ-साफ दिखाई दे रही थी। मैं दूर खड़ा उसका ये उपक्रम बड़ी देर से देख रहा था। मैं उसके पास गया और बोला दाई आप ये क्या खाने का उपक्रम कर रही हैं। दाई ने मुझे ऐसे देखा गोया मैं मंगल ग्रह से आया हूं। हंसते हुए बोली क्यों तुमको दिखाई नहीं दे रहा है? मंै बादाम का हलवा खा रही हूं। मुझे आश्चर्य हुआ ...मैंने पूछा दाई पर यहां तो बादाम का एक दाना भी दिखाई नहीं दे रहा है। और न ही आपकी हथेली पर हलवे का रंच मात्र भी हिस्सा। सुनते ही बुढिया मुझ पर बिगड़ते हुए बोली वाह... बेटा..... गुलाब जामुन में कभी गुलाब देखा है। मैंने कहा नहीं...उसने पलटते ही सवाल किया और जामुन, मैंने कहा नहीं। वो जोर से बड़बड़ाई गुलाबजामुन में न गुलाब ढूंढ सके और न जामुन....अब आए हैं हमारा हलवा ढंूढने। बड़े आए ढूंढने वाले। अरे बेटा ये तुम्हारे बस का काम नहीं है। मैंने पूछा क्यों... आप ऐसा क्यों कह रही हैं? उसने कहा सच बता रही हूं बेटा ये तुम्हारे वश की बात नहीं है। मैंने उस बुढिय़ा की उम्र पूूछी तो दिमाग चकराया जब उसने अपनी उमर 16 साल बताया। मैं चकरा गया अजीब बात है ये सत्तर साल की बुढिय़ा खुद को सोलह साल की युवती बता रही है। मैं इसी पसोपेश में था कि वो हंस पड़ी बोली बेटा मेरे चेहरे पर मत जाना...मेरा ये हाल तो प्रदूषण के चलते हुआ है। वर्ना मेरी उमर ही अभी क्या है? मैंने पूछा आपके घर में कौन -कौन हैं? दाई बोली मेरा बहुत बड़ा परिवार है मेरे 2.55 करोड़ बच्चे हैं। मेरे आंचल में धान का कटोरा है। तब कहीं जाकर बात मेरी समझ में आई मैंने हाथ जोड़े और कहा मैं आपको नहीं पहचान सका इसके लिए सॉरी.... आप ही हैं छत्तीसगढ़ महतारी। अपनी मां की ये दशा देखकर मैं जोर -जोर से रो रहा था... जब पत्नी ने झिंझोड़ कर जगाया तो पता चला कि मैं सो रहा था। काफी देर तक रोने से दुख रहा था मेरा सर। तो अब आज्ञा दीजिए ...चलता हूं घर  कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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