गरीबों की आशा से ऐसा तमाशा क्यों?




रायपुर। सुराज की सरकार लगातार प्रदेश के गरीबों बंटाधार किए जा रही है। कभी फसल बीमा के नाम पर 5 और 30 व 50 रुपए के चेक, तो कहीं नकली खाद और बीज। मध्यान्ह भोजन में छिपकली और सांप तो अमृत दूध के नाम पर बांटा गया जहर। 17 जिलों के 574 गांवों में फ्लोराइड युक्त पानी। जर्जर स्कूल और टपकते अस्पताल, कहीं कूड़े में मिलती बच्चों की दवाई तो कहीं दवा के अभाव में मरते बच्चे। गरीबी में और मनरेगा की सबसे कम मजदूरी देने में अव्वल छत्तीसगढ़। आदिवासियों को वन अधिकार पट्टे देने के नाम पर सरकार के दांत हो जाते हैं खट्टे। नेता करते हैं घोषणाएं और अधिकारी देते हैं झांसा। सवाल तो ये है कि आखिर गरीबों की आशा के साथ क्यों हो रहा है ऐसा तमाशा?

क्या है प्रदेश के विकास की असलियत-
प्रदेश में 39.93 प्रतिशत लोग गरीब हैं। मनरेगा  एक फीसदी लोगों को भी डेढ़ सौ दिनों का रोजगार नहीं दे पाई ये सरकार। मनरेगा में काम करने वालों को पूरे देश में सबसे मजदूरी छत्तीसगढ़ में मिलती है।  यही कारण है कि तीन सालों में 80 हजार लोग राज्य से पलायन कर गए।  फसल बीमा के नाम पर 5 सौ रुपए  शेष पृष्ठ 5 पर...
प्रति एकड़ लेकर बीमे की किश्त किसानों को थमाया गया 5, 30, 50 और 2 सौ रुपए का चेक। नलों में नहीं है स्वच्छ पानी, अस्पतालों में नहीं है दवाई आखिर छत्तीसगढ़ में ये क्या हो रहा है भाई?
 आदिवासियों के साथ हो रहा छल-
वन भूमि पट्टे आदिवासियों को देने में सरकार के दांत हो रहे खट्टे। तो वहीं जो आदिवासी जंगलों में पुश्तों से  बसते आ रहे हैं अब वन विभाग के अफसर उनके आशियाने जला रहे हैं। 3 लाख आदिवासियों को वन अधिकार पट्टा  शेष पृष्ठ 5 पर...
देने की योजना फाइलों से निकली भी तो बस सरकार के चहेते और नेताओं के रिश्तेदारों को इसका फायदा मिला।
574 गांवों के लोग पी रहे फ्लोराइड वाला पानी-
राज्य के 17 जिलों के पानी में फ्लोराइड की अधिकता की बात राज्य सरकार ने मान ली है। राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक अब राज्य के 574 गाँवों में फ्लोराइड की अधिकता की वजह से फ्लोरोसिस की बीमारी बढ़ रही है।
ये होती हैं बीमारियां-
फ्लोरोसिस से लेागों के शरीर पर घातक प्रभाव पड़ रहा है। इससे असमय की बच्चों से लेकर बुजुर्गों की हड्डियाँ और दाँत कमजोर हो रहे हैं। हालाँकि राज्य सरकार बड़े पैमाने पर छत्तीसगढ़ में फ्लोराइड की अधिकता की बात तो मानती है, लेकिन इसके रोकथाम के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रही है।
रायपुर को भी नहीं करा पाए मुक्त-
इसमें रायपुर जिले की स्थिति भी गम्भीर पायी गई है। सर्वे के दौरान रायपुर जिले के धारसींवा ब्लॉक में सबसे अधिक फ्लोरोसिस से प्रभावित लोग पाए गए। सर्वे के दौरान कुछ गाँवों का ही सेेम्पल लेने पर करीब 150 लोगों के प्रभावित होने की जानकारी दर्ज है।
कहां गए सरकार के वॉटर एटीएम-
नगर निगम ने तमाम जिलों में बड़े गर्व के साथ वॉटर एटीएम लगाने की घोषणा की थी। उनका दावा था कि इससे महज एक रुपए में पांच लीटर शुध्द पानी दिया जाएगा। अफसोस की बात है कि जहां जरूरत थी वहां इनको नहीं लगाया गया। वहां के लोग पूछते हैं कि आखिर कहां गए वो वॉटर एटीएम?
मध्यान्ह भोजन के नाम पर बिच्छू और सांप-
प्रदेश में अधिकांश शालाओं में दिए जाने वाले मध्यान्ह भोजन की गुणवत्ता बेहद घटिया है। तो वहीं कहीं इसको शौचालयों में बनाया जा रहा है तो कहीं इसमें छिपकली और सांप निकलते हैं। अंबिकापुर की एक शाला में तो शौचालय में खाना बनाया जा रहा था।
पोषाहार का बंटाधार-
प्रदेश में बड़ी तादाद में लोग कुपोषण के शिकार हैं। इसी के कारण यहां बड़ी तादाद में लोगों की जान जाती है। आलम ये है कि यहां पोषहार योजना के तहत दी जाने वाली समग्रियां किसी भी दशा में खाने योग्य नहीं होतीं। इनमें कभी कीड़े तो कभी इल्लियां निकलती रहती हैं।
अमृत के नाम पर जहर-
बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने बच्चों को पिलाने के लिए मीठे पौष्टिक दूध को देने की योजना बनाई। ये योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। इस दूध को पीने से राज्य के तमाम इलाकों में तीन दर्जन से ज्यादा बच्चों की तबियत बिगड़ चुकी है और दो बच्चों की जान भी जा चुकी है। महा समुंद में ही इसी दूध के पैकेटों पर कीड़े बिलबिलाते मिले थे।
महिला बाल विकास मंत्री को योजनाओं पर गर्व-
प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री ने सदन को बड़े गर्व से बताया कि जो मौतें हुईं हैं उनका कारण दूसरा हो सकता है। उनके विभाग द्वारा दिया जाने वाला दूध तो अमृत है । अब सवाल तो ये भी उठता है कि महासमुंद में दूध के पैकेट से निकलने वाले कीड़ों को भी वे कुछ बता सकती हैं।
 कबाड़ में मिलीं बच्चों की किताबें-
प्रदेश की शालाओं में बच्चों को पढऩे के लिए दी जाने वाली सरकारी किताबें दो महीने पहले ही कांकेर में एक कबाड़ी की गाड़ी में मिली थीं। इनका वजन भी लगभग दो क्विंटल बताया गया था। उस कबाड़ी ने हमारी सरकार के संवाददाता को ये भी बताया था कि इनको उसने प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापकों के घर से प्रति एकड़ लेकर बीमे की किश्त किसानों को थमाया गया 5, 30, 50 और 2 सौ रुपए का चेक। नलों में नहीं है स्वच्छ पानी, अस्पतालों में नहीं है दवाई आखिर छत्तीसगढ़ में ये क्या हो रहा है भाई?
 आदिवासियों के साथ हो रहा छल-
वन भूमि पट्टे आदिवासियों को देने में सरकार के दांत हो रहे खट्टे। तो वहीं जो आदिवासी जंगलों में पुश्तों से  बसते आ रहे हैं अब वन विभाग के अफसर उनके आशियाने जला रहे हैं। 3 लाख आदिवासियों को वन अधिकार पट्टा देने की योजना फाइलों से निकली भी तो बस सरकार के चहेते और नेताओं के रिश्तेदारों को इसका फायदा मिला।
574 गांवों के लोग पी रहे फ्लोराइड वाला पानी-
राज्य के 17 जिलों के पानी में फ्लोराइड की अधिकता की बात राज्य सरकार ने मान ली है। राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक अब राज्य के 574 गाँवों में फ्लोराइड की अधिकता की वजह से फ्लोरोसिस की बीमारी बढ़ रही है।
ये होती हैं बीमारियां-
फ्लोरोसिस से लेागों के शरीर पर घातक प्रभाव पड़ रहा है। इससे असमय की बच्चों से लेकर बुजुर्गों की हड्डियाँ और दाँत कमजोर हो रहे हैं। हालाँकि राज्य सरकार बड़े पैमाने पर छत्तीसगढ़ में फ्लोराइड की अधिकता की बात तो मानती है, लेकिन इसके रोकथाम के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रही है।
रायपुर को भी नहीं करा पाए मुक्त-
इसमें रायपुर जिले की स्थिति भी गम्भीर पायी गई है। सर्वे के दौरान रायपुर जिले के धारसींवा ब्लॉक में सबसे अधिक फ्लोरोसिस से प्रभावित लोग पाए गए। सर्वे के दौरान कुछ गाँवों का ही सेेम्पल लेने पर करीब 150 लोगों के प्रभावित होने की जानकारी दर्ज है।
कहां गए सरकार के वॉटर एटीएम-
नगर निगम ने तमाम जिलों में बड़े गर्व के साथ वॉटर एटीएम लगाने की घोषणा की थी। उनका दावा था कि इससे महज एक रुपए में पांच लीटर शुध्द पानी दिया जाएगा। अफसोस की बात है कि जहां जरूरत थी वहां इनको नहीं लगाया गया। वहां के लोग पूछते हैं कि आखिर कहां गए वो वॉटर एटीएम?
मध्यान्ह भोजन के नाम पर बिच्छू और सांप-
प्रदेश में अधिकांश शालाओं में दिए जाने वाले मध्यान्ह भोजन की गुणवत्ता बेहद घटिया है। तो वहीं कहीं इसको शौचालयों में बनाया जा रहा है तो कहीं इसमें छिपकली और सांप निकलते हैं। अंबिकापुर की एक शाला में तो शौचालय में खाना बनाया जा रहा था।
पोषाहार का बंटाधार-
प्रदेश में बड़ी तादाद में लोग कुपोषण के शिकार हैं। इसी के कारण यहां बड़ी तादाद में लोगों की जान जाती है। आलम ये है कि यहां पोषहार योजना के तहत दी जाने वाली समग्रियां किसी भी दशा में खाने योग्य नहीं होतीं। इनमें कभी कीड़े तो कभी इल्लियां निकलती रहती हैं।
अमृत के नाम पर जहर-
बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने बच्चों को पिलाने के लिए मीठे पौष्टिक दूध को देने की योजना बनाई। ये योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। इस दूध को पीने से राज्य के तमाम इलाकों में तीन दर्जन से ज्यादा बच्चों की तबियत बिगड़ चुकी है और दो बच्चों की जान भी जा चुकी है। महा समुंद में ही इसी दूध के पैकेटों पर कीड़े बिलबिलाते मिले थे।
महिला बाल विकास मंत्री को योजनाओं पर गर्व-
प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री ने सदन को बड़े गर्व से बताया कि जो मौतें हुईं हैं उनका कारण दूसरा हो सकता है। उनके विभाग द्वारा दिया जाने वाला दूध तो अमृत है । अब सवाल तो ये भी उठता है कि महासमुंद में दूध के पैकेट से निकलने वाले कीड़ों को भी वे कुछ बता सकती हैं।
 कबाड़ में मिलीं बच्चों की किताबें-
प्रदेश की शालाओं में बच्चों को पढऩे के लिए दी जाने वाली सरकारी किताबें दो महीने पहले ही कांकेर में एक कबाड़ी की गाड़ी में मिली थीं। इनका वजन भी लगभग दो क्विंटल बताया गया था। उस कबाड़ी ने हमारी सरकार के संवाददाता को ये भी बताया था कि इनको उसने प्राथमिक शाला के प्रधानाध्यापकों के घर से खरीदा है।


मुख्यमंत्री के सबसे लंबे कार्यकाल का हाल

   आज प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल के 12 साल 230 दिन हो चुके हैं। इन बारह सालों में प्रदेश में मूलभूत सुविधाओं के अभाव, घोटालों की बाढ़ और सुविधाओं के नाम पर सन्नाटा। बिगड़ैल अफसरशाही, झीरम कांड जैसी तबाही, बालोद का अंखफोड़वा कांड में 48 और बागबहरा में 16 लोगों की आंखों की रोशनी गई। और डॉ. रमन सिंह के गृहग्राम कवर्धा में भी 5 लोगों ने आंखों की रोशनी गंवाई।  बिलासपुर के पेंडारी और पेंड्रा में नसबंदी कांड में 18 की मौत,दवा विके्रता की दवाओं में पाया गया था जहर, पीडीएस घोटाला,जर्मप्लाज्म घोटाला, गर्भाशय कांड में हजारों महिलाओं की निकाल कर बच्चेदारी सुना रहे हैं विकास की कहानी? मनरेगा में सबसे कम मजदूरी और गरीबी में अव्वल, किसानों की आत्महत्या में तीसरा और मनरेगा में एक फीसदी लोगों को नहीं दे सके रोजगार। इस साल भी किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा चला गया है 2सौ के पार। किसानों को सूखा राहत के नाम पर थमाया 5, 30, और 80 रुपए का चेक।



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