लापरवाही और अफसरशाही


हमें खबर थी जुबां खोलने पे क्या होगा, मगर कहां-कहां आंखों पे हाथ रख लेते।


दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाने वाली अफसरशाही भी लापरवाही करने में पीछे नहीं है। वैसे भी लापरवाहियों और छत्तीसगढ़ की अफसरशाही का चोली-दामन का साथ है। चाहे वे शहीदों के शवों और उनकी वर्दियों का  हो या फिर जवानों का। भारत का यही वो राज्य है जहां कुछ वर्षों पहले नक्सली मुठभेड़ में शहीद जवानों को शवों को कचरे की गाडिय़ों में ढोया गया था। तो वहीं प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में शहीदों की वर्दियां और बूट कूड़े के डिब्बे में मिले थे। ये तो शहादत के बाद की बात है। कांकेर की कलेक्टर तो इन सबसे चार कदम आगे निकलते हुए उनकी सुरक्षा में तैनात जवान से ही अपनी चप्पलें उठवाईं। बेचारा जवान धुर नक्सलवाद प्रभावित इलाके दुर्गूकोंदल में कोटरी नदी पर बने चेकडैम जिसके ऊपर से पानी बह रहा था, उसको पार किया। सुरक्षा के सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए गए। ऐसे में अगर कहीं कोई नक्सली वारदात हो जाती तो फिर शासन -प्रशासन जवाब खोजने के लिए माथापच्ची करता नज़र आता। ठीक वैसे ही जैसे शहीदों के अपमान के मामले में हो रहा है। जांच कमेटी बनाकर महानदी स्नान कर लेने की प्रशासन की प्राचीन परंपरा है। अब वो कमेटी कब तक लेटी रहेगी इसको कोई नहीं जानता।
प्रशासनिक अधिकारियों का व्यवहार पूरे देश में लगातार तानाशाही की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। ऐसे में इनको संयम बरतने की सलाह भी दी जा चुकी है। तो वहीं अफसरशाही है कि मानने को तैयार नहीं। यही कारण है कि तमाम विभागों में इनकी गतिविधियों को लेकर असंतोष की स्थिति रहती है। सरकार भी इनके ऊपर वैधानिक कार्रवाई करने से बचती है। सवाल तो ये है कि आखिर इनके ऊपर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी किसकी है? और वो अपना काम क्यों नहीं कर रहा है? जब कि इसकी शिकायत लगातार प्रदेश के सांसदों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक ने प्रदेश के मुखिया से की है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव