किसानों के साथ शासकीय मजाक


जुर्म करना और इल्ज़ाम किसी पर धरना, ये नया नुस्खा है बीमार भी कर सकता है।


सारी लागत जोडऩे पर खेती अब काफी ज्यादा घाटे का सौदा साबित हो रही है। अब वो दिन लद गए जब लोग मजदूरों से खेती करवा कर मुनाफे में रहा करते थे। अब तो सारी लागत जोड़कर अगर खेती से हुई उपज के बाजार मूल्य से घटा दिया जाए तो हालत आसानी से समझ में आ जाती है। प्रदेश में धान के किसानों के साथ भी यही सब लागू होता है। इस साल अभी तक दो सौ से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इस पर हर कोई सवाल दाग देता है कि अरे भला ऐसी भी क्या मुसीबत आन पड़ी थी कि आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया? तकलीफ इस बात की है कि किसानों की दशा और खेती की दिशा की ओर सोचने का वक्त न तो सरकार के पास है और न ही तथाकथित किसानों के हितचिंतकों के पास। जहां देश के तमाम बड़े-बड़े उद्योगपतियों को  करोड़ों रुपए के कर की छूट दे दी जाती है। तो वहीं किसानों को एकन्नी की भी छूट नहीं मिलती। ऊपर से  बैंक अपना बकाया वसूलने तो गले पर सवार रहता है और राहत के नाम पर भी किसानों को आहत ही किया जाता है। इसी छत्तीसगढ़ में सूखा राहत के नाम पर सरकार के ईमानदार अफसरों ने 5 से लेकर 50 रुपए तक के चेक बांटे। तो वहीं सरकार ने जो दावा किया वो कम कष्ट देने वाला नहीं रहा। सवाल तो ये है कि सरकार और उसके ईमानदार अधिकारी सिर्फ और सिर्फ फाइलों में आंकड़ों के घोड़े दौड़ाने से ज्यादा और कुछ करना ही नहीं जानते। अब ऐसे राज्य में किसान भला खुद$कुशी नहीं तो और क्या करेगा। सिर्फ घोषणाओं को अगर छोड़ दिया जाए तो प्रदेश को बनने से लेकर अभी तक यहां के किसानों की दशा में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। जिनको दावे करने और अपनी पीठ ठोंकवाने की पुरानी आदत पड़ चुकी है। उनका कुछ किया भी तो नहीं जा सकता? ये राज्य सरकार एक भी योजना पूरे दम के साथ बता दे जिसका वो पूरी तौर पर क्रियान्वयन कर पाई हो?
 फर्जी सम्मान पत्रों को दिल्ली से लाकर छत्तीसगढ़ की जनता को दिखाने से कुछ नहीं होता। धरातल पर उन योजनाओं के परिणाम भी दिखाई देने चाहिए। यहां तो धरातल पर सिर्फ और सिर्फ लाशें दिखाई दे रही हैं। कहीं किसानों की तो कहीं उनके बच्चों की। किसानों को कर्ज और बच्चों को मर्ज के नाम पर मारा जा रहा है। गरीबी के साथ ये प्रशासकीय मजाक बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता। ऐसे में सरकार अभी चौथे कार्यकाल की उम्मीद लगाए बैठी है। यदि ये सरकार और इसके ईमानदार अधिकारियों ने अपने काम का तरीका नहीं बदला तो जनता इनको बदल देगी इसमें कोई दो राय नहीं है।

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