झूठी सरकार की असलियत



बदन पर चीथड़े और उस पर भी नज़रें ज़माने की, इलाही हद भी होती है किसी को आजमाने की।


भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्य की गरीबी की जो तस्वीर आंकड़ों के माध्यम से देश के सामने रखी वह बेहद चौंकाने वाली है। किसी ऐरेगैरे का आंकड़ा होता तो उसको साम,दाम दंड और भेद से मौन करा दिया गया होता। छत्तीसगढ़ से गरीबी हटाने के नाम पर गरीब हटाए जा रहे हैं। आदिवासियों को सुविधाएं देने के नाम पर प्रदेश में जो लूट मची है उसकी असलियत अब जाकर सामने आई। जहां मर्जी आई उसी क्षेत्र को नंबर वन बता दिया गया। सुराज का साज पूरे एक महीने बजाने के बाद इन आंकड़ों के सामने आने के बाद तो वही कहावत चरितार्थ हुई न कि....खोदा पहाड़ निकली चुहिया। पर यहां तो वो भी नहीं निकली। यहां बिजली, कोयला, दलहन और लौह उत्पादन में नंबर वन होने वाले राज्य की असलियत ये है कि वो गरीबी में भी नंबर वन है। इस पर न तो देश के प्रधानमंत्री कुछ बोले और न राज्य के मुख्यमंत्री। बड़े-बड़े दावे करने और सरकारी फाइलों में फर्जी आंकड़ों के घोड़े दौड़ाने वाले अफसरों को तो लगा कि सांप सूंघ गया। राज्य की दो करोड़ पचपन लाख जनता से इतना बड़ा झूठ आखिर क्यों बोला गया? वे कौन सी परिस्थितियां थीं कि इस सच्चाई को छिपाया गया?
यहां सबसे अहम सवाल तो ये भी है कि अगर भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े सच्चे हैं तो फिर सरकार झूठ बोल रही है। और अगर सरकार के आंकड़ों में दम हो तो वो आरबीआई के आंकड़ों को झूठा साबित करे? गरीबों और आदिवासियों के विकास के नाम पर जो हजारों करोड़ों रुपए आए उनका क्या हुआ? क्या इसके बाद भी कोई गरीब छत्तीसगढिय़ा इस सरकार के आंकड़ों पर विश्वास करेगा? और करेगा भी तो क्यों?जब काम करने वाले अधिकारियों और मंत्रियों के काम का ये नतीजा है तो फिर उनको इतना मोटा वेतन और भत्ते देना कहां तक उचित है? सुराज की सरकार ने आखिर ऐसे विधायकों का वेतन क्यों बढ़ाया? केंद्र सरकार ने सातवां वेतनमान क्यों दिया गया?
संसद से लेकर विधान सभा के पटल पर राज्य की झूठी तस्वीर क्यों रखी गई। इस पर देश की सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान क्यों नहीं लिया? क्या ये कोई संगीन मामला नहीं है? अगर है तो इस पर तत्काल कार्रवाई करते हुए तमाम लोगों के वे वेतनभत्ते वापस लिए जाने चाहिए जिन्होंने संसद और विधान सभा के पटल पर झूठी रिपोर्ट रखी है। इसके अलावा इन सभी की सदस्यता समाप्त करते हुए इनके खिलाफ भारतीय दंड विधान की संगीन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। संसद और विधान सभा हमारे लोकतंत्र की आस्था के मंदिर हैं। इनसे देश की ढाई अरब जनता का  विश्वास जुड़ा हुआ है। ऐसे में न्यायपालिका को ये चाहिए कि वो ऐसे झूठे और फरेबी लोगों पर तत्काल कार्रवाई करे, ताकि लोगों का विश्वास देश की कानून व्यवस्था में कायम हो सके।

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