सियासत पर भारी तीसरा शिकारी

कटाक्ष-

निखट्टू
पहले रोज़ेदारों को राज्य के दो प्रमुख लोग इफ्तार कराया करते थे। ये रस्म काफी सालों से बदस्तूर चली आ रही थी। उम्मीद की जा रही थी कि सूबे के दोनों आलीज़नाब के बंगले से इफ्तार की दावत जरूर आएगी। रोज़े खत्म हो गए इफ्तार नहीं हुआ। रोज़दारों ने फिर भी उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा। उनको इस बात की पक्की उम्मीद थी कि इस बार तो ईदगाह मैदान पर ईद मिलने उनके अजीज और सूबे के सूबेदार जरूर तश्रीफ लाएंगे। हुजूर की सवारी निकली तो जरूर मगर ईदगाह में न जाकर वे सीधे एक रसूखदार के यहां तश्रीफ ले गए। राजधानी के रोज़ेदारों में इसको लेकर निराशा का माहौल है। उनकी शिकायत सूबे के मुखिया और गवर्नर दोनों से है। इनको तकली$फ इसी बात की है कि अल्पसंख्यकों से कम से कम मिल तो सकती थीं ये दोनों बड़ी शख्सियतें? क्या इनकी मसरू$िफयत इतनी बढ़ गई थी कि छुट्टी के दिन इनको दो लफ्ज़ बोलने का भी वक्त नहीं मिला? सबसे अहम सवाल तो ये कि क्या अल्प संख्यकों को लेकर सरकार की नीयत बदलने लगी है?
ये तमाम ऐसे सवाल थे जो ईदगाहों में रह-रह कर सिर उठा रहे थे। इसका दर्द भी वहां मौजूद लोगों के चेहरे पर साफ-साफ दिखाई दे  रहा था।
यहां एक बात और भी साफ है कि किसी के चाहने और न चाहने से कुछ नहीं होता। कुछ ऐसी चीजें हैं जो सैकड़ों सालों से चलती आ रही हैं और आगे भी  चलती रहेंगी। ये अलग बात है कि हम ये मोगालता पाल बैठते हैं कि अगर हम नहीं करेंगे तो ये काम नहीं होगा।  एक दार्शनिक ने कहा भी है कि $गम में हम सब दिन चलता है, मगर हम ही हम एक सेकेंड नहीं चलता।
सियासत की बिसात पर दरअसल इस मामले के पीछे भी कोई तीसरा शिकारी है। असलियत ये है कि इनके ऊंचे कंधों का इस्तेमाल करके कोई तीसरा शिकार कर रहा है। परोक्ष से जिसने भी वार किया उसको हमेशा दुत्कार और धिक्कार ही मिली है। ऐसे में आज नहीं तो कल वे भी दुत्कारे जाएंगे इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन काफी दिनों के बाद देखने को मिलेगा इसका असर। देखिए तब तक और कौन-कौन से कारनामें करते हैं सर तो आप भी लगाइए कयास और हम भी निकलते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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