सियासी हाशिए पर जाते बैस


ना-ख़ुदा ने मुझे दलदल में फंसाए रक्खा, डूब मरने न दिया पार उतरने न दिया।


राज्य के कद्दावर भाजपा नेता रमेश बैस को नरेंद्र मोदी की नई कैबिनेट में जगह नहीं मिली। इससे पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि इस बार उनको जरूर कोई न कोई मंत्रालय मिल जाएगा। इसको लेकर एक बार फिर से बैस समर्थकों के हाथ में निराशा ही लगी। रमेश बैस की खासियत ये भी रही है कि वो छठवीं बार रायपुर से सांसद हैं। तो वहीं उनका नकारात्मक पक्ष ये है कि इस बार के कैबिनेट विस्तार में जिसको भी पद मिला है वो उनके जातीय समीकरण को देखते हुए दिया गया है। तो दूसरा कारण ये भी बताया गया कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां के बड़े जनाधार वाले नेताओं को भी इसमें शामिल किया गया है। इस बदलाव में एक ओर जहां अच्छा काम करने वाले चेहरों को जगह दी गई तो अच्छा कार्य प्रदर्शन नहीं कर पाने वालों का पत्ता भी साफ किया गया। कइयों के पर कतरे गए तो कइयों की परवाज़ को कम किया गया।
इस मामले में रमेश बैस का पक्ष काफी कमजोर है। यानि कि अपने 30 साल के कार्यकाल में इन्होंने कोई ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया, जिसको लेकर लोग प्रधानमंत्री के पास दावा कर सकें। और तो और बैस अपने गोद लिए गांव में कितनी बार गए हैं ये तो उस गांव वाले अच्छी तरह से बता पाएंगे।
संभवत: यही कारण है कि रमेश बैस अब संगठन के कार्यक्रमों से भी दूरी बनाने लगे हैं। हालांकि उनकी मुख्यमंत्री से भी सियासी खींचतान काफी पुरानी है। वैसे भी इन संकेतों को बैस के लिए नकारात्मक माना जा रहा है। ये उनको की नहीं प्रदेश भाजपा  संगठन के तमाम सांसदों को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ओर से चेतावनी है सुधर जाने की। यदि प्रदेश के सांसद ऐसा नहीं करते तो वो दिन दूर नहीं जब तमाम बड़े और कद्दावर नेताओं की तरह इनको भी हाशिए पर डाल दिया जाएगा।
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