शहादत की 7 वीं बरसी पर बूढ़ी आंखें भी बरसी



भ्रष्ट अफसरशाही के शिकार, शहीदों के परिजनों की न अधिकारी सुनते हैं न सरकार

भ्रष्ट अफसरशाही और लोकतंत्र के लॉलीपॉप को देख कर जीभ लपलपाते मंत्रियों की लापरवाही का त$काजा है, कि शहादत के 7 साल होने के बावजूद भी 29 शहीदों की प्रतिमाएं आज तक उनके गांवों में नहीं लग सकीं। यही कारण है कि राजनांदगांव के पुलिस लाइन में आयोजित शहीदों के सम्मान समारोह में उनकी 7वीं बरसी पर उनके परिजनों की बूढ़ी आंखें भी जमकर बरसीं।
 नक्सलवाद की लड़ाई में  2009 में मुख्यमंत्री की कर्मभूमि राजनांदगांव के ही मानपुर के कोरकोट्टी, मदनवाड़ा और सीतागांव में हुई मुठभेड़ में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे और सुरक्षा बलों के 29 जवान शहीद हुए थे। उनकी शोक सभा में सरकार की ओर से लंबे -चौड़े वादे किए गए थे। आज उस घटना को 7 साल बीत चुके हैं मगर शहीदों के गृहग्रामों में उनकी प्रतिमा तक नहीं लगवाई जा सकी। इसी बात की लड़ाई बलिदानियों के परिजन लड़ते आ रहे हैं। ऐसे में सवाल तो यही है कि शहीदों के साथ ये प्रशासनिक दोगलापन आखिर कहां तक जायज़ है?

29 शहीदों के परिजनों से अधिकारी लगवा रहे दफ्तरों के चक्कर-
 रायपुर।
मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर एक नज़र -
सुराज की सरकार के मुखिया डॉक्टर रमन सिंह ने तमाम मौकों पर ये घोषणाएं की थी कि राज्य में शहीदों के गांवों में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। कोर्स की किताबों में बच्चों को ऐसे शहीदों की शौर्य गाथाएं पढ़ाई जाएंगी। अधिकांश स्कूलों और शालाओं का नाम इन्हीं शहीदों के नाम पर रखा जाएगा। आलम ये है कि यहां धरातल पर कोई भी काम सही उतरता नहीं दिखाई दे रहा है।  ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या मुख्यमंत्री सिर्फ घोषणाएं ही करना जानते हैं? अगर हां तो फिर उन घोषणाओं को यथार्थ रूप देना आखिर किसकी जिम्मेदारी है? और वो आदमी या अधिकारी क्या शासन-प्रशासन से ज्यादा ताकतवर हो गया है?
 कार्यालयों के कटवाए जा रहे चक्कर-
सुराज की सरकार दावे तो बड़े-बड़े करती है, मगर धरातल पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ सन्नाटा ही दिखाई देता है। राज्य सरकार की भ्रष्ट अफसरशाही ने उन बूढ़ी आंखों से छलकने वाली उस पीड़ा का अंदाजा तक नहीं लगाया जिसने इस राज्य की खुशहाली के लिए अपनी बुढ़ौती की लाठी खो दिया। उस सुहागन की सूनी मांग तक नहीं दिखाई दी जिसने अपना सुहाग इस राज्य को दे दिया, और उनके सामने आज बेवा बनी खड़ी है। उन मासूम बच्चों की पीड़ा भी नहीं दिखाई दी जिसके सिर से बाप का साया छिन गया। इनको अगर कुछ दिखाई देती हैं तो वो हंै नोटों की गड्डियां और अपनी कुर्सी अपनी गाड़ी अपना वेतन अपनी खुशी।
आखिर क्यों चक्कर कटवा रही है सरकार-
ये बुजुर्ग और शहीदों की विधवाएं विभागीय कार्यालयों के चक्कर काट-काट कर परेशान हो चुके हैं। इन्होंने  मुख्यमंत्री तक से गुहार लगाईं मगर रत्ती भर भी काम होता नज़र नहीं आया।  इन सात सालों में इनको अगर कुछ मिला है तो वो है तारीख.... पर तारीख।
बूढ़ी आंखों का सपना है कि गांव में लग जाए बेटे की प्रतिमा-
हमले में शहीद हुए आरक्षक संतराम साहू के पिता ने रुंधे गले से बताया कि बेटे के सम्मान में अब तक कसडोल क्षेत्र में प्रतिमा स्थापित नहीं हुई है। हमारी आखिरी ख्वाहिश है कि मेरे शहीद बेटे की प्रतिमा हमारे गांव में लगवा दी जाए।
7 साल बाद भी जब दिखे लाल तो छलक आई आंखें-
सात वर्ष बाद भी इस दिन की याद कर लोगों की आंखें नम हो जाती हैं। जिले के पुलिस लाइन में आयोजित कार्यक्रम में शहीदों की तस्वीरों को देकर उनके परिजन फफक पड़े। शहीदों की 7वीं बरसी के अवसर पर पुलिस लाइन में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में देशभक्ति के गीतों के बीच शहीदों के चित्रों पर पुष्पांजली अर्पित की गई।
 श्रीफल थमा कर काट गए कन्नी-
शहीदों के परिजनों को पुलिस विभाग के अधिकारियों ने शाल और श्रीफल थमाया और किनारे हो लिए। सवाल वहीं का वहीं रह गया।

गैर जिम्मेदार प्रशासनिक मशीनरी के बहाने-
मैं अभी अवकाश पर बाहर हूं मुझे मामले की जानकारी नहीं है। आप एसपी से पता कर लीजिए।
मुकेश बंसल
कलेक्टर राजनांदगांव
सभी 29 लोगों की ही प्रतिमा नहीं लगाई गई हो ऐसा नहीं हो सकता। आज मैं एक परिवार से मिला हूं। उनकी मांग जल्दी ही पूरी कर दी जाएगी।
प्रशांत अग्रवाल
पुलिस अधीक्षक
राजनांदगांव
इन्होंने नहीं उठाया फोन-
इस मामले के संदर्भ में सरकार का  पक्ष जानने के लिए गृहमंत्री रामसेवक पैकरा से लगातार उनके मोबाइल पर संपर्क किया गया। घंटियां बजती रहीं और मंत्री ने फोन नहीं उठाया। इससे हमारे प्रदेश के गृहमंत्री के कर्तव्य परायणता का पता चलता है। तो वहीं  प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अमरनाथ उपाध्याय से भी लगातार उनके मोबाइल पर संपर्क किया गया, मगर उन्होंने भी फोन नहीं उठाया। इससे पुलिस विभाग की सक्रियता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सवाल तो यही है कि अगर जो लोग सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल जनहित में नहीं करते सरकार उनसे वो संसाधन तत्काल वापस क्यों नहीं ले लेती? अब अगर राज्य की जनता ऐसे अधिकारियों से कोई उम्मीद रखती हो तो रख सकती है मगर अंजाम क्या होगा ये सब जानते हैं।

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