पलायन को मजबूर छत्तीसगढ़ के मजदूर




 सुराज की सरकार धुआंधार दावे किए जा रही है। दिल्ली से सम्मान पर सम्मान ढो कर ला रही है, मगर असलियत ये है कि मजदूरों को मजदूरी देने और मनरेगा के तहत काम देने में छत्तीसगढ़ सरकार फिसड्डी साबित हुई है। ये हम नहीं सरकारी आंकड़े कहते हैं। यही कारण है कि पिछले तीन सालों में 80 हजार से ज्यादा मजदूरों ने दूसरे राज्यों में पलायन किया। मनरेगा के तहत 0.77 फीसदी मजदूरों को ही सरकार सौ दिनों का रोजगार दे सकी। जब कि मुख्यमंत्री ने डेढ सौ दिनों के रोजगार की घोषणा की थी। तो वहीं राज्य में मनरेगा की मजदूरी भी पूरे देश से कम है। यहां मजदूर को 159 रुपए दैनिक मजदूरी मिलती है। ऐसे में सवाल तो ये है कि ये सरकार ऐसा करके किसका भला कर रही है? 
 3 सालों में 80 हजार करने गए दूसरे राज्यों में काम,
मजदूरी की दर और मजदूरों को काम देने में छत्तीसगढ़ सरकार फिसड्डी





रायपुर।
क्या है मनरेगा की सच्चाई
राज्य की डॉ. रमन सिंह की सरकार मनरेगा के तहत डेढ़ सौ दिनों का रोजगार देने का दावा किया था, मगर 0.77 फीसदी लोगों को ही सौ दिनों का काम दे सकी। जब कि राज्य में 39 लाख 30 हजार 617 जॉब कार्डधारी हैं। 13 लाख 95 हजार 961 लोगों ने रोजगार मांगा। इनमें 2.29 प्रतिशत को डेढ सौ दिनों और 0.77 प्रतिशत लोगों को सौ दिनों का काम दिया गया। तो वहीं भुगतान के लिए खून के आंसू रुलाए गए। अभी भी तमाम मजदूरों की मजदूरी बकाया है। ऐसी सरकार को केंद्र सरकार ने मनरेगा में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए तीन-तीन राष्ट्रीय पुरस्कार 2 फरवरी को दिल्ली बुलवा कर दे डाले। आंकड़ों पर अगर गौर करें तो समझ में नहीं आता कि राज्य सरकार ने ऐसा कौन सा तीर मार दिया कि उसको तीन-तीन सम्मान केंद्र सरकार ने दे मारे?
देश में सबसे कम मजदूरी देता है छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में मनरेगा की मजदूरी देश में सबसे कम मात्र 159 रुपया प्रतिदिन है।  यह एक प्रमुख कारण है कि छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में गांव वाले पलायन कर देश के दीगर राज्यों में चले जाते हैं। जबकि आंध्रप्रदेश में मनरेगा की प्रतिदिन की मजदूरी 180 रुपये, गुजरात में 178 रुपये, हरियाण में 251 रुपये, जम्मू-कशमीर में 164 रुपये, कर्नाटक में 204 रुपये, केरल में 229 रुपये, पंजाब में 201 रुपये, तेलंगाना में 180 रुपये तथा तमिलनाडु में 183 रुपये प्रतिदिन है।
क्याकहतेहैं वर्षवार आंकड़े
खुद सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2013-14 में 23,420 मजदूरों ने, साल 2014-15 में 31,902 मजदूरों ने तथा साल 2015-16 में फरवरी माह तक 25,096 मजदूरों ने पलायन किया।
क्यों करते हैं मजदूर पलायन
प्रदेश से मजदूरों के पलायन का पहला कारण सूखा तो है ही उसके बाद दूसरा है कम मजदूरी का मिलना। जांजगीर-चांपा से पलायन का एक बड़ा कारण वहां के नदियों के पानी को पॉवर उद्योगों को दिया जाना भी है।  इससे पहले जांजगीर-चांपा छत्तीसगढ़ का सबसे सिंचित जिला माना जाता था।  जाहिर है कि उद्योगों ने वहां के गांव वालों को किसानी से बेदखल करके मजदूरी करने कि लिये मजबूर कर दिया।  जाहिर है कि जब मजदूरी करेंगे तो उस स्थान की ओर पलायन कर जायेंगे जहां ज्यादा मेहताना मिलता मिलता है चाहे वो निजी ठेकेदार या ईंट भट्टे के मालिक ही क्यों न हो।  यह अर्थशास्त्र का सामान्य सा नियम है।  इस चक्कर में वे दलालों के हाथों में फंसकर निजी ठेकेदारों के यहां काम करने लगते है जहां कई बार उन्हें बंधक बना लिया जाता है।
क्या कहते हैं बिलासपुर के आंकड़े
सरकारी आकड़ों की सच्चाई परखने के लिये बिलासपुर के आंकड़ें पर्याप्त हैं।  बिलासपुर में पिछले तीन सालों में क्रमश: 767-813-538 मजदूरों ने पलायन किया।  जबकि पलायन के समय यदि कोई बिलासपुर के रेलवे स्टेशन तथा बस स्टैंड में दिन के 10 घंटे भी बैठ जाये तो पायेगा कि इतनी संख्या में मजदूर तो रोज पलायन करते हैं।  जाहिर है कि पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या सरकारी आकड़ों से कई-कई गुना ज्यादा है।
अभी मुझे इस विभाग में आए चार दिन ही हुए हैं। मजदूरों की मजदूरी का रिवीजन साल में दो बार होता है। मैं अगली बार इसको बढ़वाने की शासन से पूरी कोशिश करूंगा।
आर.पी. मंडल,
सचिव, श्रम विभाग छत्तीसगढ़ शासन

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