जले विकलांग की कराह

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल करते हैं मगर चर्चा नहीं होती।


प्रदेश की भ्रष्ट हो चुकी अफसरशाही किस कदर बेलगाम हो चुकी है। इसको नतीजा कल मुख्यमंत्री आवास के बाहर और अंबेडकर अस्पताल में देखने को मिला। जब एक विकलांग युवक ने सीएम रेजीडेंस के पास आत्मदाह की कोशिश की और उसको अस्पताल पहुंचाया गया। दर्द और जलन से कराह रहा वो युवक आधे घंटे तक चीखता रहा, मगर अस्पताल प्रबंधन आराम से अपनी रफ्तार से कामों को अंजाम देने में लगा रहा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। हमेशा विवादों में रहने वाले मेकाहारा के डॉक्टर्स के  लिए ये आम बात है। उस युवक के शरीर से उठती सवालों की लपटों ने मुख्यमंत्री के जनदर्शन को भी अपने लपेटे में ले लिया। अब राज्य की जनता ये जनना चाहती है कि क्या ऐसे गैर संवेदनशील अफसरों और डॉक्टर्स को सातवां वेतनमान देना उचित है? जब ये काम नहीं कर सकते तो जनता इन पर इतना दाम क्यों खरचे? सरकारी नौकरियों का ये चरित्र बनता जा रहा है कि बिना काम के बढिय़ा दाम और पूरा आराम जहां मिले उसे ही सरकारी नौकरी कहते हैं। अगर मेहनत कर दी तो ऊपरी कमाई अलग से। हद तो तब हो जाती है जब किसी घुसखोर अधिकारी का बाप अपने रिश्तेदारों को इस ऊपर की कमाई को भी एक योग्यता बता कर पेश कर देता है। यही अफसरशाही प्रदेश के मुखिया को दुखिया जनता से दूर करने की लगातार कोशिश में लगी रहती है। उसके पीछे सीधा सा कारण भी है कि अगर आम जनता सीएम के करीब जाएगी तो उनकी पोल खोल देगी। पत्रकार भी अगर पास गए तो पता नहीं कौन सी शिकायत कर दें?
सरकार अगर चौथी बार सत्ता में आने का सपना देख रही है, तो उसको सबसे पहले अपनी इस मशीनरी को पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त बनाना होगा। इसके अलावा भाजपा कार्यकर्ताओं को उनके व्यवहार और कार्यशैली  में परिवर्तन लाना होगा। हालांकि ये संकेत प्रदेश के मुखिया बारनवापारा की बैठक में दे चुके हैं। इसके साथ ही साथ इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा कि ऐसी घटनाओं की दोबारा पुनरावृत्ति न होने पाए। इससे सरकार और मुख्यमंत्री दोनों की प्रतिष्ठा खराब होती है।

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