तस्वीरों के नेपथ्य में


कटाक्ष-

निखट्टू
आज मुझे कोलकाता के प्रसिध्द कवि जयकुमार रुसवा की एक क्षणिका याद आ रही है कि- छिपकली...कीट पतंगों को खाती है, और फिर गांधी-नेहरू की तस्वीर के नीचे छिप जाती है। छत्तीसगढ़ वन संपदा सम्पन्न राज्य है। ऐसे में यहां ऐसी छिपकलियों का पाया जाना स्वभाविक है। सियासत में महापुरुषों की तस्वीरों के पीछे छिपने का ट्रेड काफी पुराना हो गया है। कोई गांधी के तो कोई लोहिया और कोई भीमराव अम्बेडकर की तस्वीरों का सहारा ले रहा है। तो वहीं कोई श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा के पीछे छिपता आ रहा है। इसके बाद सब के सब तस्वीर के पीछे छिपकर पक्के हो जा रहे हैं। कई बार तो छिपकलियों में एक ही शिकार के लिए टकराव की नौबत आ जाती है। तो दूसरी छिपकलियों की छीछालेदर तक हो जाती है।
जनता का क्या है वो कभी जातिवाद और संप्रदायवाद के विवाद में भिड़ी हुई है। उसके इसी टकराव का फायदा उठाया जा रहा है। मशहूर शायर एज़ाज के लफ्ज़ों में कहेंं तो बस ह$कीकत इतनी सी है कि-किसी का कल संवारा जा रहा है, हमें किश्तों में मारा जा रहा है। आलम यही है कि जिम्मेदार घोषणाएं कर-कर के मर रहे हैं। जनता कभी मिलावट तो कभी अदावत तो कभी बनावट के पीछे रही है मर.....ऐसे में आपको दिखा कर कुछ रसूखदार छिपकलियों का डर हम भी निकल लेते हैं अपने घर... तो फिर कल आपसे फिर मुलाकात होगी..तब तक के लिए जय...जय।
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