बिना धार की कटार
चरा$गों को उछाला जा रहा है, हवा पर रौब डाला जा रहा है।
33 साल का समय और 14 हजार करोड़ की भारी-भरकम रकम खर्च करने के बाद, अधूरी तैयारियों वाले दो तेजस विमान वायुसेना में शामिल किए गए। इनकी रफ्तार को लेकर भी परस्पर विरोधी बयान आते रहे। कोई इनको 1350 किलोमीटर प्रति घंटे तो कोई 2250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाला बता रहा है। तकनीक की अगर बात की जाए तो इस विमान में सैकड़ों खामियां मौजूद हैं। कमजोर इंजन, लैंडिंग गियर का गर्म होना और बुलेट फायरिंग के समय कांपना जैसी कमियों को तो आसानी से गिनाया जा सकता है। इस स्वदेशी लड़ाकू विमान की सच्चाई ये है कि ये वायुसेना में शामिल होन से पहले ही बूढ़ा हो गया। अब इसको दूसरे विमानों से बेहतर बताया जा रहा है। जब कि इसको बनाने वाली टीम के अधिकारी ही इसकी काबिलियत पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। उनका साफ कहना है कि मारुति के पैसे में मर्सिडीज की सुविधाएं नहीं मिल सकतीं। तो कुछ लोगों ने इसको फ्लाइंग डैगर यानि उड़ती कटार का नाम दिया है। अब उनको क्या पता कि इस कटार में धार है ही नहीं। जो है भी वो समय के हिसाब से आउटडेटेड हो चुकी है। हिफाजत से ज्यादा बजट खर्च हो जाने के बाद अब बदनामी से बचने के लिए इसको आधी-अधूरी तैयारियों के साथ शामिल किया जा रहा है। उस पर भी हमारे रक्षा मंत्री के इसको निर्यात करने की घोषणा करना बिल्कुल बचकाना लगती है। पहले कम से कम अपनी जरूरत भर का तो पहले बना लें फिर कर लेंगे निर्यात?
तेजस का जो वर्जन इस वक्त वायुसेना के पास है उसकी रफ्तार 1350 किलोमीटर प्रति घंटे की है। इससे ज्यादा रफ्तार पर दूसरे देशों में ट्रेनर विमान उड़ाए जा रहे हैं। ऐसे में ये वायु सेना के किसी काम का नहीं हो सकता। सिवाय हैंगर्स में खड़े रहने के।
प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के लोगों ने देश की ढाई अरब जनता से इतना बड़ा झूठ क्यों बोला? ऐसी क्या मजबूरी थी कि आनन-फानन में इस अप्रासंगिक विमान को वायुसेना के बेड़े को टिका दिया गया? क्या हमारे जवानों के जान की कोई कीमत नहीं है? देश की सुरक्षा के साथ इतना बड़ा समझौता आखिर क्यों किया गया? उस वक्त कहां था प्रधानमंत्री के 56 इंच का सीना? ये ऐसे तमाम सवालात हैं जिसका जवाब आज नहीं तो कल प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश की जनता को देना पड़ेगा।
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