जगन्नाथ को खींचने में लगे करोड़ों हाथ




अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो,संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे।



कालिया ठाकुर, गुडि़चा,जगन्नाथ ऐसे कितने ही नामों से उनको जाना जाता है। पूरी दुनिया से लोग उनके दर्शनार्थ उड़ीसा जाते हैं। सबसे बड़ा द्वार, सबसे बड़े रथ और सबसे बड़ी रसोई के मालिक हैं और राजाओं के भी राजा हैं हमारे भगवान जगन्नाथ। करोड़ों हाथ उनके रथ का रस्सा खींचते हैं तो वहीं बिना हाथ के जगन्नाथ उसमें सवार होकर निकलते हैं। आस्था का महापर्व रथ यात्रा आज से शुरू हो गया। भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने -अपने रथों पर आज से अपनी मौसी के यहां जाने के लिए निकलेे। अभी कुछ दिनों पहले स्नान कर लेने से भगवान जगन्नाथ की तबियत खराब हुई थी। उनको वैद्य ने काढ़ा भी पिलाया था। अब वे अपनी मौसी के यहां जाने के लिए निकले हैं। छत्तीसगढ़ का उड़ीसा की जगन्नाथ यात्रा से गहरा नाता है। यहां सुकमा जिले में 6 सौ साल पुराना भगवान जगन्नाथ का मंदिर है।
इस महापर्व की खासियत है कि यहां परंपराओं का निर्वाह पूरी ईमानदारी और श्रध्दा से किया जाता है। ये हमारी सनातन परंपरा रही है।
पुरी का महाप्रसाद पूरी दुनिया में जाता है। तमाम शुभ कर्मों में इस प्रसाद का इस्तेमाल किया जाता है। भारत के साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करती हैं ये हमारी समृध्द परंपराएं। हर भारतीय को इन पर गर्व है। तो वहीं भगवान जगन्नाथ का रथ ये संदेश देता है कि जिस तरह से इस रथ को लोग एक साथ बिना किसी भेदभाव के खींच रहे हैं। उसी तरह देश को भी एक साथ मिलजुल कर चलाना चाहिए। हम एक थे, हैं और एक ही रहेंगे। यही संदेश लेकर हर साल ये रथ यात्रा महापर्व आता है और आता रहेगा।

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