लालटेन का लफड़ा

कटाक्ष

-निखट्टू
एक दिन लालटेन के सारे कलपुर्जांे में शुरू हुआ झगड़ा, वो भी हल्का नहीं तगड़ा। लोहे के ढांचे ने खुद को सबसे मजबूत बताया। तो मिट्टी के तेल की समझ में आ गया सारा खेल, उसने तत्काल ये कहकर खींची ढांचे की नकेल। बोला अगर लालटेन में नहीं रहेगा तेल, तो खत्म समझो खेल, आदमी तो यही कहेगा कि क्या इस ढांचे को लेकर नाचें? शीशे ने कहा अच्छा और जो मैं देता रहता हूं हवा और बारिश से सुरक्षा, इसीलिए तो इनके पास तक हवा नहीं पहुंच पाती। सुनते ही गुस्से में आई बत्ती। बोली तुम लोगों को शर्म भी आती है एक रत्ती? अरे मैं जलती हूं सारी रात और तुम लोग करते हो बड़ी-बड़ी बात? अरे एक दिन नहीं जली तो कोने में दिखोगे? तीसरे दिन ही किसी कबाड़ी के हाथ बिकोगे। और वो कबाड़ी जब हथौड़ी चलाएगा तो तुम सबको अपनी-अपनी मजबूती का पता चल जाएगा। लोग जो अपने-अपने गुणों पर इतना इतराते हंै, उनको पता होना चाहिए कि हम सब मिलकर इस लालटेन को बनाते हैं। ये बात सबको समझना जरूरी है कि एक भी पुर्जे के बिना लालटेन अधूरी है। यही बात समाज और देश पर लागू होती है। मुझे तो बहुत ही अच्छे लगे बत्ती के बैन...सही बात है इसी का तो नाम है लालटेन। तो फिर आप क्या समझे सर..... समझ गए चलो अच्छा है तो अब मैं भी निकलता हूं अपने घर तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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