सवालों के घेरे में व्यवस्था




अजीब रंग था मज्लिस का खूब महफिल थी,सफेद पोश उठे कांए-कांए करने लगे।


देश में लोग फर्जी डिग्रियों के मामले में बिहार का नाम लेते हैं। तो वहीं छत्तीसगढ़ में फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के माध्यम से सरकारी नौकरियां हथियाने वालों की लंबी कतार है। ऐसे 543 लोगों की शिकायत सामने आने के बाद सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। उसने बाकायदा मामलों की पड़ताल की। इसमें 190 प्रकरण सही पाए गए। तो वहीं जिम्मेदार अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने फर्जी प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल करने वालों पर वैधानिक कार्रवाई कर दी है। इनमें 65 लोगों पर कार्रवाई हुई,39 ने उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश ले लिया।  बाकी बचे 86 जो अभी भी अपनी-अपनी कुर्सियों पर जमे हुए हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर इन पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? उच्च स्तरीय जांच समिति की अनुशंसा का क्रियान्वयन करने में इतनी कोताही क्यों बरती जा रही है? मजेदार बात तो ये कि जिन लोगों की सेवाएं समाप्त की गईं उनके वेतन की रिकवरी नहीं की गई। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या सरकार को धोखे में रखकर काम करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता? अगर ऐसा है तो उसके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जब वो आदमी शासन को  धोखा देकर कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर नौकरी करता है। तो उसके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करने में सरकारी अधिकारियों के हाथ आखिर क्यों कांप रहे हैं।
जिन अधिकारियों की गलती से इनको  नियुक्ति मिली। यानि जिन्होंने इनके कूट रचित दस्तावेजों को सही बता कर असल ह$कदारोंं को अयोग्य ठहराया उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? सरकार ने ऐसे लोगों को अदालत में क्यों नहीं घसीटा? क्या वे अपराधी नहीं है? ऐसे लोगों को सरकार आखिर क्यों बचाना चाहती है? ये तमाम ऐसे प्रश्र हैं जो प्रशासन की कार्रवाई पर उठ खड़े होते हैं। ये ऐसे सवाल हैं जो आम आदमी की आस्था को खंडित करते है। सरकार को चाहिए कि वो माननीय अदालत के आदेशों का पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से न सिर्फ पालन करे। बल्कि वो उन तमाम दोषियों के काले कारनामों का काला चि_ा भी अदालत के समक्ष रखे, जिन्होंने अयोग्य को योग्य बताने और व्यवस्था से छल करने का अपराध किया है।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव