बिहार की डगर पर सरकार


सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है, इल्ज़ाम आईने पे लगाना फुज़ूल है।


अब तो समझ में नहीं आता कि इस सरकार को सुराज की सरकार कहें या फिर पुरस्कार विजेता सरकार। नई दिल्ली में मिलने वाले पुरस्कारों का एक बड़ा हिस्सा ये सरकार झटक लेेती है। उसको लाकर 2.55 करोड़ छत्तीसगढिय़ों के सामने पटक देती है। छप जाते हैं बड़े-बड़े समाचार कि फलाने-फलाने क्षेत्र में नई दिल्ली से पुरस्कार लेकर आ गई राज्य की भाजपा सरकार। अब सवाल तो ये है कि उस क्षेत्र सरकार की हालत भी बिहार के शिक्षा विभाग जैसी ही दिखाई दे रही है। जैसे वहां बिना परीक्षा दिए ही लोग टॉपर होते जा रहे हैं। वैसे ही राज्य सरकार भी यहां बिना काम किए ही पुरस्कारों में टॉपर होती जा रही है। दलहन उत्पादन में कृषि कर्मण पुरस्कार वर्ष 2015 के लिए राज्य सरकार को मिला था। ये वही वर्ष है जिस साल छत्तीसगढ़ में दाल दो सौ रुपए किलो बिकी थी। मनरेगा में तीन-तीन पुरस्कारों असलियत ये है कि अभी भी तमाम मजदूरों की मजदूरी अटकी पड़ी है, और बेचारे सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। निर्मल ग्राम के क्रियान्वयन में भी पुरस्कारों सच्चाई ये है कि राजधानी रायपुर में अभी भी लोग खुले में शौच करते हैं।
वैसे भी ये कठोर सच्चाई है कि बिना सियासी जुगाड़ के कोई पुरस्कार किसी को नहीं मिलता। अगर राज्य सरकार को मिलता जा रहा है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ये इस बात को पुख्ता करती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह पर मेहरबान हैं लिहाजा सम्मानों की वर्षा हो रही है। तो वहीं प्रदेश की सरकार को भी इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि अगर उसको अपना चौथा कार्यकाल भी मुकम्मल करना है, तो आंकड़ों का तमाशा खेलने की बजाय जमीनी स्तर पर काम करना होगा। हालांकि मुख्यमंत्री भी अभी बारनवापारा के चिंतन शिविर में इसको लेकर वक्तव्य भी दे चुके हैं। अब कार्यकर्ता उस पर कितने खरे उतरते हैं ये तो फिलहाल आने वाला समय बताएगा।

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