अमरूद का असर

कटाक्ष-

निखट्टू
एक अमरूद के बाग में एक बच्चा पेड़ पर चढ़कर चोरी-चोरी अमरूद खा रहा था। बाग के मालिक ने उसको रंगे हाथों पकड़ लिया। उसने कहा चलो आज तो इसकी शिकायत तुम्हारे पिताजी से करूंगा। बच्चे का हाथ पकड़कर जैसे ही बाग का मालिक उसके घर की ओर चला बच्चे ने उससे हाथ छुड़ाते हुए कहा अंकल उसके लिए उधर जाने की कोई जरूरत नहीं है। पिताजी तो इसी बाग के कोने वाले पेड़ पर मिलेंगे। सुनकर बाग के मालिक का सिर घूमने लगा।
प्रदेश में सरकार के भी हालात कुछ ऐसे ही दिखाई दे रहे हैं। आलम ये है कि जो जिधर से पा रहा है दोनों हाथों से सरकारी अमरूद जमकर खा रहा है, तो वहीं जिसको बताने की बात की जाती है वे बगल वाले पेड़ पर ही उपलब्ध रहते हैं। ऐसे में अब कौन चालीस किलोमीटर दूर जाए? वैसे भी सरकार के खेवनहार लगातार यही नारा देकर अपने चारे पानी का प्रबंध कर रहे हैं कि सुराज की सरकार आपके द्वार। यहां तो इस बाग के मालिक ऐसा अमरूद खिला रहे हैं कि खाने वाले ही लुढ़क जा रहे हैं। तो उनके खासम-खास इस अमरूद को स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त बता रहे हैं। इसको खाने से न जाने कितनों को खांसी तो कितनों की कुुकुरखांसी में जान तक चली गई। तो वहीं सरकार भी ये जान चुकी है कि ये अमरूद खराब है। ऐसे में भला कौन ऐसा विक्रेता होगा जो अपने फल को अपने ही मुंह से खराब बताएगा? ये तो अभी भी चिल्लाए जा रहे हैं कि उनके अमरूद की टक्कर का अमरूद पूरे बाजार में किसी का भी नहीं है। तो वहीं अब गंवई-गंवारों का कहना है कि एक बार तो इनके इस अमरूद की जांच करवा कर ही दम लेंगे हम। कम से कम ये तो पता चले कि आखिर ज़हर है कहंा। अमरूद में या फिर अमरूद बेचने वाले की जेब में। जो सारा का सारा ऐब ग्रामीणों के सिर पर थोप कर हर बार बच निकलता है। तो आइए आप और हम मिलकर एक साथ जोड़कर दोनों हाथ करें ये प्रार्थना कि इस बार की जांच के फंदे में फंस जाए इस धोखेबाज विक्रेता का सर.... यही विनती करते-करते अब हम भी जा रहे हैं घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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