शिक्षाकर्मियों की सैलरी
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जि़ंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
बड़े-बड़े दावे और धरातल पर सन्नाटा, कुछ ऐसा ही चल रहा है प्रदेश के शिक्षा विभाग का काम। यहां सिर्फ घोषणाएं होती रहती हैं। तो वहीं समय-समय पर कभी मध्यान्ह भोजन के नाम पर छिपकली से लेकर सांप तक बच्चों की थाली में परोसा जाता है। तो कभी अमृत दूध के नाम पर जहर पिला कर गरीबों के बच्चों को मारा जा रहा है। इससे भी चौंकाने वाली बात तो ये है कि तमाम शालाओं के शिक्षाकर्मियों को चार महीने से वेतन नहीं मिला है। ऐसे में कर्ज से दबे शिक्षाकर्मियों की हालत देखने लायक है। कोई उधारी वाले से परेशान है तो कोई सूदखोर से। किसी के गहने गिरवीं पड़े हैं तो किसी का खेत। इसके बावजूद भी ये बेचारे शिक्षाकर्मी अपनी पूरी निष्ठा से अध्यापन कार्य किए जा रहे हैं। महिला शिक्षाकर्मियों का आलम ये है कि किसी का गला खाली है तो किसी का पांव। अब ऐसे में कौन होगा जो पूरे मनोयोग से बच्चों को शिक्षा दे सकेगा? कहीं छत टपक रही है तो कहीं मैदान में पानी भरा है। कहीं छप्पर के नीचे कक्षाएं लगती हैं तो कहीं पेड़ के। ऐसी बदहाल शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के नाम पर सरकार के पास सिवाय आश्वासन और कुछ भी नहीं है।
ऐसे में अगर प्रदेश का शिक्षा विभाग अपने कार्यों को लेकर गंभीर है, तो उसको सबसे पहले शिक्षाकर्मियों को उनकी तनख्वाह समय पर देना होगा। इसके अलावा स्कूलों की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देना होगा। लगातार इन सारी चीजों की मॉनिटरिंग करनी होगी। तब कहीं जाकर शिक्षा के क्षेत्र में किसी बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।
बड़े-बड़े दावे और धरातल पर सन्नाटा, कुछ ऐसा ही चल रहा है प्रदेश के शिक्षा विभाग का काम। यहां सिर्फ घोषणाएं होती रहती हैं। तो वहीं समय-समय पर कभी मध्यान्ह भोजन के नाम पर छिपकली से लेकर सांप तक बच्चों की थाली में परोसा जाता है। तो कभी अमृत दूध के नाम पर जहर पिला कर गरीबों के बच्चों को मारा जा रहा है। इससे भी चौंकाने वाली बात तो ये है कि तमाम शालाओं के शिक्षाकर्मियों को चार महीने से वेतन नहीं मिला है। ऐसे में कर्ज से दबे शिक्षाकर्मियों की हालत देखने लायक है। कोई उधारी वाले से परेशान है तो कोई सूदखोर से। किसी के गहने गिरवीं पड़े हैं तो किसी का खेत। इसके बावजूद भी ये बेचारे शिक्षाकर्मी अपनी पूरी निष्ठा से अध्यापन कार्य किए जा रहे हैं। महिला शिक्षाकर्मियों का आलम ये है कि किसी का गला खाली है तो किसी का पांव। अब ऐसे में कौन होगा जो पूरे मनोयोग से बच्चों को शिक्षा दे सकेगा? कहीं छत टपक रही है तो कहीं मैदान में पानी भरा है। कहीं छप्पर के नीचे कक्षाएं लगती हैं तो कहीं पेड़ के। ऐसी बदहाल शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के नाम पर सरकार के पास सिवाय आश्वासन और कुछ भी नहीं है।
ऐसे में अगर प्रदेश का शिक्षा विभाग अपने कार्यों को लेकर गंभीर है, तो उसको सबसे पहले शिक्षाकर्मियों को उनकी तनख्वाह समय पर देना होगा। इसके अलावा स्कूलों की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देना होगा। लगातार इन सारी चीजों की मॉनिटरिंग करनी होगी। तब कहीं जाकर शिक्षा के क्षेत्र में किसी बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।
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