आदिवासियों का अधिकार



अंधेरा है या तेरे शहर में उजाला है, हमारे जख़्म पे क्या फर्क पडऩे वाला है।



पूरे देश में एक कहावत मशहूर है कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। वास्तव में यहां की संस्कृति और यहां के लोगों की मिलनसार प्रवृत्ति का ही नतीजा है कि दूसरे राज्यों के लोग भी यहां आकर बसे और यहीं के होकर रह गए। भगवान श्रीराम का ननिहाल भी छत्तीसगढ़ में बताया जाता है। तो वहीं ऊपर वाले ने इस राज्य में खनिज और वन संपदा के साथ-साथ जड़ी बूटियों का अकूत भंडार दिया है। प्रकृति ने इस राज्य को जितना संपन्न बनाया है यथार्थ में यहां के लोग उतने ही गरीब और पिछड़े हुए हैं। शहरी इलाकों को अगर छोड़ दिया जाए तो गांवों में अभी भी गरीबी और बेरोजगारी चरम पर है। सरकार भी गरीबों को इससे उबारने को लेकर गंभीर नहीं दिखाई देती। यही कारण है कि यहां आए दिन गरीबों के साथ शासकीय मजाक होता ही रहता है। आदिवासियों और गरीबों को यहां लगातार प्रताडि़त होना पड़ता है। सरकार की तमाम सुविधाएं इन गरीबों की झोपडिय़ों में पहुंचने के पहलीे ही शहरों के धनी और मालदार लोगों को बांट दी जाती हैं। सुविधाओं के नाम पर इनको सिर्फ असुविधाएं ही मिलती हैं।
सरकारी अफसर और बीमा कंपनियों के लोग इनको किस प्रकार ठग रहे हैं इसके तमाम नमूने समय-समय पर देखने को मिले। यही कारण है कि प्रदेश में आए दिन इनकी और इनके बच्चों की मौतें होती ही रहती हैं। इसके अलावा सरकारी योजनाओं के नाम पर भी इनके साथ प्रशासनिक छल ही किया जा रहा है। चाहे वो दवाओं का मामला हो या फिर संजीवनी अथवा महतारी एक्सप्रेस और स्मार्ट कार्ड जैसी सुविधाओं का। इनके साथ हर बार छल किया जाता है और ये बड़े ही संतोष के साथ चुप्पी साधे रह जाते हैं। ऐसे में सवाल तो यही है कि आखिर इन गरीबों को उनका असली अधिकार कब मिलेगा? जो सरकार खुद को गरीबों और आदिवासियों का मददगार होने का दावा करती है। वो अपने दावों पर खरी कब उतरेगी? कब इन अभिशप्त लोगों के जीवन में खुशहाली आएगी? य$कीन मानिए जिस दिन छत्तीसगढ़ के पहुंच विहीन इलाकों में सरकारी योजनाएं ईमानदारी से धूम मचाएंगी। आदिवासियों की बहन-बेटियां खुशी से झूमेंगी और मुस्कराएंगी। सरकार पर कोई भी ताने नहीं कसेगा, पूरा छत्तीसगढ़ खूब जोर-जोर से ठहाके लगाकर हंसेगा।

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