साही मरत मूंड पे मारे

कटाक्ष-

निखट्टू
एक बार एक जंगल में कुछ शिकारी साही का शिकार करने जा रहे थे। साही रात को निकलने वाला एक जंगली जीव है जिसके सिर पर विषैले कांटे होते हैं। अब ये सारे शिकारी नए थे। इन लोगों ने साही को घेर लिया। लगे उसकी पीठ पर लाठियों से मारने, साही मरे ही न। लाठियां मारते-मारते सारे युवा परेशान हो गए। उनकी ये लीला वहीं पास की झोपड़ी के पास खड़े एक साधू बाबा देख रहे थे। जो पहले खुद बड़े शिकारी हुआ करते थे। अब उनसे नहीं रहा गया। वे जोर-जोर से बोलने लगे कि साही मरत मूंड पे मारे मोहि संतन से का पड़ी। अर्थात साही के अगर सिर पर किसी डंडे से मार दिया जाए तो वो मर जाती है, लेकिन मुझ साधू से क्या मतलब। लड़कों की समझ में बात आ गई और उन्होंने एक लाठी साही के सिर पर दे मारी और वही हुआ जो बाबा जी ने कहा था। साही मर गई। ऐसे ही कुछ संत छत्तीसगढ़ शासन के नया रायपुर में भी आलीशान भवनों में बैठे हैं जो यही बताते हैं कि साही आखिर कैसे मरेगी। उन्हीं के दिशा-निर्देशों में पूरे राज्य में साही तमाम शिकारी मार रहे हैं। हालांकि पिछवाड़े वाले गेट से लेट नाइट थोड़ा सा मीट उनके भी घर आता है, अब वो खाएं या उनके रिश्तेदार हमारा क्या जाता है। समय-समय पर एसीबी वाले रहे हैं ऐसे लोगों को धर तो अब हम भी यही गाते हुए चलते हैं अपने घर कि साही मर मूंड पे मारे मोहि संतन से का पड़ी। तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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