चांद की चर्चा
कटाक्ष-
निखट्टू
चांद की खोज अब पुरानी बात हो गई। वैज्ञानिकों ने उस पर वो सब कुछ तलाश लिया जिसकी उनको जरूरत थी। तो वहीं शइरों को आज भी उसमें अजूबा दिखाई देता है। अब एक शाइर तो यहां तक कह गए कि- चांद के शौ$क में तुम छत पे मत चली जाना, शहर में ईद की तारी$ख बदल जाएगी। यानि उस शाइर की महबूबा इतनी खूबसूरत रही होगी कि लोग उसी को चांद समझ बैठें? अभी कल शाम की ही बात है। हमारे साहब ख़्ाान साहब शाम को आकाश की ओर टकटकी लगाए हुए खड़े थे। हमने सवाल किया कि भाईज़ान क्या तलाश रहे हो? जवाब मिला चांद तलाश रहे हैं। कि तब तक बगल के मोहल्ले से सायरन बजने की आवाज़ आने लगी। उनके चेहरे पर खुशी देखते ही बन रही थी। हमने भाई को ईद की बधाई दे डाली।
अब चांद-चांद की बात होती है। हम साहब भाई को बोलने वाले थे कि हुज़ूर उस चांद की बजाए एक नज़र हमारी गंजी-चांद को देख लो काम हो जाएगा।
अभी परसों की ही तो बात है रात को छत पर हम और हमारे तीन मित्र जो संयोग से गंजे हंै,उनके साथ छत पर बैठे-बैठे सुख-दुख बतिया रहे थे। अचानक हमारी श्रीमती जी ने तंज़ कसा- क्या बात है आज तो हमारी भी छत पर चार चांद लगे हैं। पहले तो हम समझ ही नहीं पाए मगर जब उनका इशारा समझ में आया तो जोरदार ठहाका लगा। अब मैं कहां चूकने वाला था लगे हाथ जवाब दे मारा। मैंने देवलाल भइया को इशारा करके कहा भइया शादी के पांच साल तक पत्नी चंद्रमुखी, उसके बाद सूर्यमुखी उसके पांच साल बाद ज्वालामुखी और अंत में बहुमुखी हो जाती है। और पति पहले पांच साल तक प्राणनाथ फिर उसके बाद नाथ और अंत में अनाथ हो जाता है। सुनते ही मैडम तनतना कर उठीं और कमरे में चली गईं। मैं समझ गया कि तीर निशाने पर लग गया।
जब व्यंग्यवाण से घायल हो मोहतरमा ने मुंह फुलाया तब मामला मेरी समझ में आया। कि चांद-चांद के चक्कर में हमारा चांद जून का सूरज होने को आ गया। इससे पहले उनकी दिमागी गर्मी दिखाए अपना असर, अब ऑफिस का काम छोड़कर निकल लेते हैं घर.... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
निखट्टू
चांद की खोज अब पुरानी बात हो गई। वैज्ञानिकों ने उस पर वो सब कुछ तलाश लिया जिसकी उनको जरूरत थी। तो वहीं शइरों को आज भी उसमें अजूबा दिखाई देता है। अब एक शाइर तो यहां तक कह गए कि- चांद के शौ$क में तुम छत पे मत चली जाना, शहर में ईद की तारी$ख बदल जाएगी। यानि उस शाइर की महबूबा इतनी खूबसूरत रही होगी कि लोग उसी को चांद समझ बैठें? अभी कल शाम की ही बात है। हमारे साहब ख़्ाान साहब शाम को आकाश की ओर टकटकी लगाए हुए खड़े थे। हमने सवाल किया कि भाईज़ान क्या तलाश रहे हो? जवाब मिला चांद तलाश रहे हैं। कि तब तक बगल के मोहल्ले से सायरन बजने की आवाज़ आने लगी। उनके चेहरे पर खुशी देखते ही बन रही थी। हमने भाई को ईद की बधाई दे डाली।
अब चांद-चांद की बात होती है। हम साहब भाई को बोलने वाले थे कि हुज़ूर उस चांद की बजाए एक नज़र हमारी गंजी-चांद को देख लो काम हो जाएगा।
अभी परसों की ही तो बात है रात को छत पर हम और हमारे तीन मित्र जो संयोग से गंजे हंै,उनके साथ छत पर बैठे-बैठे सुख-दुख बतिया रहे थे। अचानक हमारी श्रीमती जी ने तंज़ कसा- क्या बात है आज तो हमारी भी छत पर चार चांद लगे हैं। पहले तो हम समझ ही नहीं पाए मगर जब उनका इशारा समझ में आया तो जोरदार ठहाका लगा। अब मैं कहां चूकने वाला था लगे हाथ जवाब दे मारा। मैंने देवलाल भइया को इशारा करके कहा भइया शादी के पांच साल तक पत्नी चंद्रमुखी, उसके बाद सूर्यमुखी उसके पांच साल बाद ज्वालामुखी और अंत में बहुमुखी हो जाती है। और पति पहले पांच साल तक प्राणनाथ फिर उसके बाद नाथ और अंत में अनाथ हो जाता है। सुनते ही मैडम तनतना कर उठीं और कमरे में चली गईं। मैं समझ गया कि तीर निशाने पर लग गया।
जब व्यंग्यवाण से घायल हो मोहतरमा ने मुंह फुलाया तब मामला मेरी समझ में आया। कि चांद-चांद के चक्कर में हमारा चांद जून का सूरज होने को आ गया। इससे पहले उनकी दिमागी गर्मी दिखाए अपना असर, अब ऑफिस का काम छोड़कर निकल लेते हैं घर.... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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