बारिश में छापों की छप-छप


बदकिस्मती के हम भी कायल नहीं हैं महसर, हमने बरसात में जलते हुए घर देखे हैं।


भयानक गर्मी के बाद अब वरुण देवता क्या मेहरबान हुए भोपाल से लेकर रायपुर तक सीबीआई और एसीबी वालों ने छापों की छप-छप खेलना शुरू कर दिया। भोपाल के  राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान परिषद (एनआईटीटीटीआर) के पूर्व डॉयरेक्टर  के रीवा स्थित घर सहित 21 स्थानों पर छापे मारे और दस्तावेजों का जांच पड़ताल की। तो वही रायपुर के 7 अधिकारियों के आवासों पर एसीबी ने छापे मार कर 18 करोड़ की अनुपातहीन संपत्ति का खुलासा किया। उधर नदी और नालों का पानी निकल कर नदियों से होता हुआ समुद्र में जा रहा था। तो इधर भी अनुपातहीन संपत्तियों का निकलना लगातार जारी रहा। अब ऐसी संपत्तियों को सरकारी खजाने में राजसात किया जाएगा या नहीं ये फैसला तो अदालत करेगी। वैसे भी अगर देखा जाए तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अक्सर छापे पड़ते ही रहते हैं। प्रशासनिक स्वच्छता के लिए ये सब होना भी नितांत जरूरी है। इससे एक ओर जहां जनता का विश्वास शासन- प्रशासन और कानून व्यवस्था में बढ़ता है तो वहीं गैर कानूनी काम करने वालों के कारनामों का भी पर्दाफाश हो जाया करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी प्रचार में जो वादा देश की जनता के साथ किया था वो फलीभूत होता दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा था कि न खाऊंगा और न ही खाने दूंगा। तो वहीं ये बात भी कटु सत्य है कि प्रधानमंत्री खाएं या न खाएं मगर अभी भी देश में तमाम ऐसे अधिकारी हैं तो जमकर खा रहे हैं। अब ऐसे ही लोगों पर अगर प्रशासन कार्रवाई करता है तो ये अच्छी बात होगी।
सरकार को इस पुराने पड़ते तंत्र को एक बार फिर से कसना होगा। वैसे भी  ये शास्वत सत्य है कि किसी भी यंत्र से सुर तब तक नहीं निकलते जब तक कि उसको ठीक से कसा न जाए। ऐसे में ये प्रशासनिक कसावट नितांत जरूरी है। सरकार ने लोगों के वेतन तो बढ़ाए हैं मगर जिम्मेदारियां नहीं तय की। यही इस देश का दुर्भाग्य है। यदि सरकार ने वेतन के साथ-साथ तमाम अधिकारियों और मंत्रियों की जिम्मेदारियां तय की होती, तो देश की जनता  को आज ये दिन कतई नहीं देखने को मिलते। प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल से कुछ लोगों की विदाई कम से कम इसी ओर इशारा करती है। यदि काम नहीं करेंगे तो फिर कुर्सी ज्यादा दिनों तक बचने वाली नहीं है, अगर कुर्सी बचाए रखनी है तो फिर काम करना होगा।

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