स्वच्छता का सितम


किसी का कल संवारा जा रहा है, हमें किश्तों में मारा जा रहा है।


प्रदेश में बेलगाम हो चुकी अफसरशाही को संभालने में सरकारी तंत्र पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है। इसका शिकार बन रहे हैं गांव के गरीब तबके के लोग। इनको कभी मनरेगा के नाम पर तो कभी स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर तो कभी किसी दूसरे काम के लिए परेशान किया जाता है। कभी इनकी झोपडिय़ों को अवैध बताकर फूंक दिया जाता है। तो कहीं इनकी बहू-बेटियों के बाहर शौच जाने पर कोई अधिकारी बाकायदा रेकार्डिंग करता है। कहीं कागजों पर ही तमाम भवन निर्माण हो जाता है। तो कहीं किसानों को 5 से लेकर 80 रुपए के सूखा राहत के चेक बांटे जाते हैं। इसके बावजूद भी प्रशासन चुप्पी साध लेता है। ताजा मामले में कांकेर के मनकेसरी गांव की सरपंच ने कलेक्टर की शह पर गांव के 15 परिवारों का हुक्का-पानी बंद कर दिया । उस पर भी तुर्रा ये कि इन गरीब लोगों को सरकारी राशन दुकानों से सस्ता राशन देना तक बंद कर दिया गया। अब ये गरीब दाने-दाने को मोहताज हो चुके हैं। इनका दोष महज इतना है कि इन लोगों ने सरपंच की बैठक में शौचालय निर्माण में मजदूरी करने से ये कहते हुए मना कर दिया था कि इसमें काम करने पर समय पर मजदूरी नहीं मिलती। बस यही बात सरपंच को नागवार गुजरी और उन्होंने इनको गांव से बहिष्कृत करने का तु$गलकी फरमान जारी कर दिया। अब आलम ये है कि गांव के ये गरीब शहर से महंगा राशन खरीद कर अपने बच्चों का भरण-पोषण करने को विवश हैं। सवाल तो ये है कि क्या प्रदेश की अफसरशाही अब अंग्रेजों की राह पर चल निकली है? अब ये लोग भी बेगारी प्रथा को दोबारा चालू करना चाहते हैं? मनरेगा में मजदूरी के पैसे अभी भी बकाया है। उसको देने के लिए सिवाय आश्वासनों के अलावा कोई गरीबों को कुछ भी नहीं दे पा रहा है। अलबत्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह को तीन-तीन पुरस्कार मनरेगा में उत्कृष्ट कार्यों के लिए दे मारे, मगर सच्चाई ये है कि राज्य सरकार महज 0.77 फीसदी लोगों को ही मनरेगा के तहत 150 दिनों का रोजगार दे पाई  है। मजदूरी के नाम पर अब भी तमाम लोगों को चक्कर कटवाया जा रहा है। ऐसे में क्या मजदूरी मांगना ही उन 15 परिवारों का गुनाह है? अगर हां तो क्या कलेक्टर बिना पैसों के काम करते हैं? इनका बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता? सरपंच भी तो पैसे लेती हैं तो उनका बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता?
सरकार को चाहिए कि वो तत्काल ऐसे तानाशाह अफसरों के खिलाफ प्रभावी करते हुए अपनी संवेदनशीलता का परिचय दे। तो वहीं ग्रामीणों को भी चाहिए कि वे ऐसे सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएं और उसको उसकी असली औ$कात याद दिला दें।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव