एक अभियान का मिथ्या अभिमान



मैं आईना था टूट कर भी आइना रहा, कैसा लगेगा तुमको जब पत्थर कहेंगे लोग।


प्रदेश में विकास के नाम पर कितनी नौटंकियां खेली जा रही हैं, इसकी गिनती करना मुश्किल लगता है। मजेदार बात तो ये कि इनमें से अधिकांश में मुख्य भूमिका में खुद मुख्यमंत्री ही नज़र आते हैं। नया मामला स्वच्छता अभियान से जुड़ा है। रायपुर में दो दिवसीय सेमिनार में पूरे देश के कलेक्टर्स को बुलाकर छत्तीसगढ़ में कैसे स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है दिखाया गया। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तेज आवाज में जमकर दिया भाषण। मौजूद लोगों ने बजाई जमकर तालियां। तो वहीं गरियाबंद, जांजगीर-चांपा, धमतरी और बलौदाबाजार समेत तमाम जिलों में साहूकारों की उधारी लेकर शौचालय बनवाने वाले सरपंच खा रहे हैं साहूकारों की गालियां। त$कादे के भय से भागे-भागे फिरने वाले सरपंचों ने तो अब पंचायत भवनों में बैठना भी छोड़ दिया है। सवाल तो ये है कि अपनी मूंछ ऊंची करने के चक्कर में मुख्यमंत्री ने इन बेचारों की पूंछ पर हथौड़ा मार दिया। तो वहीं जनपद पंचायतों के सीईओ आराम से फाइलें दबाए बैठे हैं। उनका तर्क है कि अब मामला हमारे पास है। जब हमको फुर्सत मिलेगी फाइलेें जिम्मेदार अधिकारियों तक पहुंचाई जाएंगी। उसके बाद उनकी मंजूरी मिलने के बाद तमाम प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद फिर पैसा खाते में आएगा।
ऐसे में अब जिन साहूकारों का पैसा सरपंचों ने फंसा रखा है। वे तो सरपंचों के पीछे पड़े हैं। अब जो सरपंच अपने-अपने गांवों को ओडीएफ करवाना चाहते थे उन्होंने ये हाल देखकर इस योजना से तौबा करना शुरू कर दिया है।
इसके पीछे प्रदेश की निष्क्रिय अफसरशाही को कारण बताया जा रहा है।
 ये भ्रष्ट अफसर कोई भी काम कायदे से समय पर नहीं करते। तो वहीं सुविधाएं और वेतन पूरा लेते हैं। इसके अलावा इनका पारा चौबीसों घंटे गर्म ही रहता है। कब किसको क्या बोल दें कोई नहीं जानता। कई तो ऐसे हैं जो पत्रकारों तक से उलझने में गुरेज नहीं करते। ये दीगर बात है कि बाद में सस्पेंड हो जाते हैं और फिर 15 दिनों बात बहाल होकर आ जाते हैं। कुल मिलाकर देश की अफसरशाही इसी कानून के दम पर लोगों को पैर की जूती से ज्यादा नहीं समझ रही है। इनको समझना होगा कि ये जो भी तनख़्वाह और सुविधाएं ले रहे हैं। उसका पैसा इसी जनता की जेब से आता है। ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि वो तत्काल इस बेलगाम होती अफसरशाही पर लगाम कसे। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब जनआक्रोश इनके खिलाफ सड़कों पर उतर आएगा और इनको अपने लिए जमीन तलाशनी होगी।

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