मजदूरों के पलायन की असलियत

सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछाकर,मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।

 सुराज की सरकार के मुखिया को न गरीब की पुकार सुनाई देती है और न दिखता है रोता हुआ दुखिया। वे तो बस माइक पकड़े धुआंधार घोषणाओं पर घोषणाएं किए जा रहे हैं। ये कर देंगे... वो कर देंगे। छत्तीसगढ़ को यहां से कहां पहुंचा दिया, लेकिन असलियत इसके बिल्कुल उलट है। प्रदेश की असलियत ये है कि छत्तीसगढ़ गरीबी में अव्वल, मनरेगा के तहत सबसे कम मजदूरी देने और सबसे कम दिनों का रोजगार उपलब्ध करा पाने वाला राज्य है। यही कारण है कि पिछले तीन सालों में 80 हजार से ज्यादा मजदूरों ने यहां से पलायन किया। प्रदेश में सूखा पड़ा तो मुख्यमंत्री ने गरीबों को डेढ़ सौ दिनों का रोजगार मनरेगा के तहत देने की घोषणाएं कई बार की। इसके बाद भी सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि ये सरकार एक फीसदी लोगों को भी डेढ़ सौ दिनों का रोजगार मनरेगा के तहत नहीं दिलवा पाई। उसके अलावा अभी भी तमाम जिलों में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी के पैसे बकाया हैं। सबसे कम मजदूरी वो भी तीन-चार सालों तक न मिलना। इसके अलावा खेती की अच्छी भूमि पर रसूखदारों और उद्योगों का कब्जा प्रदेश के मजदूरों को अपनी धरती छोड़कर दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर कर रहा है। ज्यादा मजदूरी की लालच में ये दलालों के हत्थे चढ़ कर ठेकेदारों के यहां पहुंचते हैं जहां इनको बंधक बना लिया जाता है। इसके बाद होता है इनका आर्थिक शोषण। साल भर में श्रम विभाग भी इक्का-दुक्का कार्रवाइयां करके अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है। वर्ना उसको इतनी फुर्सत कहां कि प्रदेश की राजधानी में उसकी नाक के नीचे ही बाल श्रम हो रहा है और उसको देखने की फुर्सत नहीं है। उद्योगों में श्रमिकों की मौतों पर मौतें हो रही हैं,कोई देखने वाला नहीं है। यहां मजदूरों का न तो ईएसआई है और न प्रॉविडेंट फंड। कोई घटना -दुर्घटना हो जाने पर उस गरीब को अपना घर बार गिरवीं रखना पड़ता है। सरकार और उसका श्रम विभाग अपनी पीठ साल में एकाध बार कार्रवाई करके ठोक लिया करता है। ऐसे में कोई मजदूर भला राज्य में कैसे मजदूरी करने को तैयार होगा? उसको बाहर जहां ज्यादा पैसे मिलेंगे तो वो उधर ही जाएगा।सरकार अगर असल में श्रमिकों का भला चाहती है तो उसको सबसे पहले गैर सरकारी उद्योगों में मजदूरों के काम की मजदूरी निश्चित करनी होगी। उनका ईएसआई और प्रॉविडेंट फंड कटवाने की व्यवस्था करे। यही नहीं उसकी लगातार मॉनिटरिंग हो ताकि उद्योगों के चपल प्रबंधक नियम कायदे के फायदे उठाकर श्रमिकों की जेब न काट सकें।

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