गरीबी में नंबर वन है छत्तीसगढ़





सुराज की सरकार की कड़वी सच्चाई



झूठ के ठंूठ पर बैठकर लोक सुराज का लॉलीपॉप थमाने वाली सरकार की असलियत ये है कि ये गरीबी में भी नंबर वन है। ये हम नहीं भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े चिल्ला रहे हैं। जनसंख्या के लिहाज से देश में सबसे ज्यादा यानि 39.93 प्रतिशत लोग छत्तीसगढ़ में गरीब हैं। ऐसे में सवाल तो ये है कि अगर ये सच्चाई है तो फिर केंद्र से गरीबों के विकास के नाम पर आने वाले करोड़ों रुपए आखिर कहां चले गए? इतने मोटे बजट को जमीन खा गई या आसमान निगल गया? तो पढि़ए इसी की पड़ताल करती हमारी सरकार की ये खास रिपोर्ट....
आश्चर्य कि इस मुद्दे पर कुछ क्यों नहीं बोलते मुख्यमंत्री डॉ. रमन
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों पर रहस्यमयी चुप्पी-
देश का सबसे ऊंचा झंडा, पीडीएस का राशन देने, दलहन उत्पादन और तमाम दूसरे क्षेत्रों में नंबर वन बना छत्तीसगढ़ जब गरीबी में भी नंबर वन बना तो इसकी असलियत सामने आई। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट सामने आने के बाद से राज्य के मुखिया से लेकर तमाम लोगों के मुंह बंद हो गए हैं। इस घटना का रोचक पहलू ये है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी जिम्मेदारों ने इस पर अफसोस तक व्यक्त नहीं किया।  क्या सिर्फ पोस्टरों और मीडिया के विज्ञापनों और सरकारी फाइलों में ही छत्तीसगढ़ के विकास की गाथा लिखी जा रही है?
क्या कहते हैं आरबीआई के आंकड़े-
जनसंख्या के प्रतिशत के लिहाज से छत्तीसगढ़ के 39.93 फीसदी लोग गरीब हैं। इसके बाद दादर एवं नागर हवेली (39.31 प्रतिशत) का स्थान है। झारखंड की 36.96 प्रतिशत, मणिपुर की 36.89 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश की 34.67 प्रतिशत तथा बिहार की 33.74 प्रतिशत आबादी गरीब है। देश में 2011-12 तक कुल 26 करोड़ 98 लाख गरीब थे, जो आबादी का 21.92 फीसदी बताया गया है।
विधायकों और अफसरों का बढ़ा वेतन-
इस जले पर खाज़ ये है कि प्रदेश के तमाम विधायकों और अफसरों का वेतन बढ़ा दिया गया। उनको सुविधाओं के नाम पर मोटी रकम भी मिलनी शुरू हो गई। अगर झूठे दावों की बात छोड़ दें तो ये कोई भी काम सलीके से नहीं कर सके हैं। ऐसे में इन भ्रष्ट अधिकारियों ने कौन सा तीर मार लिया कि उनका वेतन बढ़ाना पड़ गया?
असफलता को सरकार बताती रही अपनी सफलता-
गरीबों की तमाम योजनाओं के तहत आए पैसों की बंदरबांट नया रायपुर के वातानुकूलित कमरों में होती रही। जनता गांवों और जंगलों में सिसकती और रोती रही। सरकार अपनी हर असफलता को दिल्ली जाकर सफलता बताती रही। इसकी पोल तो उस वक्त खुली जब धमतरी की 104 साल की महिला कुंवर बाई ने अपनी दस बकरियों को बेचकर दो शौचालय बनवाया। तो प्रधानमंत्री वायुसेना के विमान से उड़कर रायपुर आए और फिर राजनांदगांव में जाकर उसका सम्मान किया। उन्होंने ये जानने की कोई कोशिश नहीं की कि छत्तीसगढ़ में और भी कितनी कुंवरबाई हैं? आज भी छत्तीसगढ़ के गांवों में तमाम ऐसी कुंवरबाई हैं जिन्होंने अपने गहने और खाद्यान्न बेचकर शौचालय बनवाया। अब ऐसे में सवाल तो ये उठता है कि अगर लोग अपने-अपने पैसों से शौचालय बनवा रहे हैं तो फिर सरकारी पैसे कहां जा रहे हैं?
शौचालय के नाम पर अफसरों का सितम-
प्रदेश के जांजगीर -चांपा के तमाम गांवों में अल सुबह ही एक अफसर बाहर शौच जाने वाली महिलाओं की न सिर्फ फोटो खींचते थे, बल्कि उनका लोटा छीनकर पानी गिरा देते थे। यही नहीं इस अधिकारी ने महिलाओं को यहां तक धमकाया था कि जल्दी से टॉयलेट बनवाओ नहीं तो सरकारी राशन और दूसरी सुविधाएं बंद कर दी जाएंगी। सवाल तो ये भी उठता है कि ये आखिर कहां तक जायज है?
मुख्यमंत्री से क्यों नहीं मांगा जवाब-
हद तो तब हो गई जब प्रधानमंत्री ने सरकारी योजनाओं में आने वाले पैसों की बिना जानकारी लिए राज्य सरकार की तारीफों के पुल बांधकर दिल्ली की ओर उड़ गए।
माना को भी यात्रियों ने नहीं माना-
साल भर भी नहीं टिक पाया यात्रियों की पहली पसंद वाला एअरपोर्ट माना। अब ये दूसरे नंबर पर आ गया। ऐसे में सवाल तो यही है कि सरकार आखिर झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रही है?
137 किसान कर चुके आत्महत्याएं-
प्रदेश के किसानों के साथ तो आए दिन सरकारी अफसरों का मजाक जारी ही रहता है। कृषि कर्मण पुरस्कार से सम्माति राज्य की असलियत ये है कि अब तक यहां 137 किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं। आए दिन कोई न कोई आत्महत्या करता ही जा रहा है, और सरकार तमाशबीन बनी लाशें गिनती जा रही है।
राहत के नाम पर किया आहत-
किसानों के साथ भ्रष्ट अफसरों का मजाक यहीं नहीं रुका। सूखा राहत ने नाम पर किसानों को और ज्यादा आहत किया गया। जहां किसानों को कहीं 25 तो कहीं 85 रुपए के चेक थमाए गए। सवाल तो ये भी उठता है कि तो फिर केंद्र सरकार के खाते से आए 12 सौ करोड़ रुपए कहां चले गए?
2 सौ रुपए किलो बिकी दाल-
वर्ष 2015 में जिस दलहन उत्पादन के लिए प्रदेश को कृषि कर्मण पुरस्कार दिया गया। उसी साल प्रदेश में 2 सौ रुपए किलो में दाल बिकी। अगर राज्य में दाल का बंपर उत्पादन हुआ तो फिर वो दाल आखिर कौन पी गया। मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री अथवा कृषि मंत्री?
सबसे ऊंचे तिरंगे का भी अपमान-
राज्य की राजधानी में नगर निगम ने बड़े गर्व से देश का सबसे ऊंचा तिरंगा लहराया। अभी साल भर भी नहीं बीता मगर सात से ज्यादा बार उस तिरंगे का अपमान हो चुका है। सवाल तो ये भी है कि क्या इस तिरंगे को अपमान करने के लिए लगाया गया था?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार हैं।)



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