33 बैगाओं की मौत पर प्रशासन बना दु:शासन




 भ्रष्ट अफसरशाही और निकृष्ट प्रशासन किस कदर दु:शासन बना बैठा है । इसका नमूना  कवर्धा में देखने को मिला जहां 6 महीने में तमाम बीमारियों से 33 बैगाओं की मौत हो गई।  तो वहीं शासन प्रशासन कान में तेल डाल कर सोया रह गया। इन संरक्षित बैगाओं को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र माना जाता है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या सुराज की सरकार वनों के साथ-साथ बैगाओं की भी परवाह नहीं है?  राज्य सरकार ने इनका स्मार्ट कार्ड क्यों नहीं बनाया?  आखिर सरकारी बजट की दवाएं कौन खा गया? ये तमा ऐसे अनुत्तरित सवाल हैं जिनका जवाब सुशासन के अधिकारियों को देना होगा।

6 महीने में हुई मौतों से सकते में आदिवासी, शासन -प्रशासन ने साधी चुप्पी
रायपुर ।
क्या है पूरा मामला-
 कवर्धा जिले में पिछले छ: माह में ही 33 बैगाओं की मौत बीमारी से हो गई है।  इसमें सबसे ज्यादा 9 बैगाओं की मौत बुखार के कारण हुई है।  जबकि 4 बैगाओं की मौत कैंसर, आत्महत्या, विषधारी जंतु के काटने तथा अज्ञात कारणों से हुई है।  इसके अलावा 1-1 बैगा की मौत टीबी तथा मलेरिया से हुई।  ताज्जुब की बात है राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित होने के बावजूद इनमें से 3 बैगाओं की मौत कुपोषण, कम वजन एवं कमजोरी तथा खून की कमी से हुई है।

जाहिर है कि कुपोषण, खून की कमी तथा कमजोरी से हुई तीनों मौतों के पीछे मुख्य कारण कुपोषण ही है।  इसके अलावा 2 बैगाओं की मौत पेट दर्द तथा 1 बैगा की मौत उल्टी से हुई।  पीलिया के कारण भी 1 बैगा की मौत हुई है।
कितनी है जनसंख्या-
देश के 74 आदिम जनजातियों में शामिल बैगाओं की जनसंख्या 42,838 रह गई है।  यह बैगा मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, कोरबा, सरगुजा तथा कबीरधाम जिलों में रहते हैं। केन्द्र सरकार के द्वारा बैगा जनजाति को संरक्षित घोषित किया गया है तथा इनके परिवार नियोजन कराने पर भी रोक लगी हुई है। ऐसे में इन संरक्षित बैगाओं का राज्य के एक ही जिले में इतनी बड़ी संख्या में बुखार, उल्टी-दस्त तथा कुपोषण से मर जाना इस बात का संकेत है कि उन्हें छत्तीसगढ़ में संरक्षित करने के लिये कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई है।

बैगाओं को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने के सरकारी दावों की असलियत इसी से जाहिर हो जाती है कि देश के तेजी से विकास कर रहे राज्य छत्तीसगढ़ में बैगा कुपोषण, बुखार, टीबी तथा कुत्ता काटने से मर जाते हैं।

गौरतलब है कि पिछले छ: माह में 33 बैगाओं की मौत का सरकारी आंकड़ा केवल कवर्धा जिले का ही है। खेती तथा जंगल ही इन बैगाओं के आजीविका के साधन हैं।  लाख दावों के बावजूद इनमें साक्षरता महज 20 फीसदी ही हैं।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार कैसे हुई बैगाओं की मौत-

बुखार से 8 बैगाओं की मौत।  हल्के बुखार से 1 बैगा की मौत।
बुखार तथा पीलिया से 1 बैगा की मौत।
कुत्ता काटने से 1, विषधारी जंतु के काटने से 1 मौत।
कुपोषण से 1 मौत।
खून की कमी से 1 मौत।
टीबी से 1 मौत।
अज्ञात बीमारी से 1 मौत।
आत्महत्या से 1 मौत।
कैंसर से 1 मौत
उल्टी से 2 मौत।
खून की उल्टी से 2 मौत।
कन्वलसन (झटका)से 1 मौत।
कम वजन व कमजोरी से 1 मौत।
लंबी बीमारी से 1 मौत।
इलाज के लिये मप्र गये की मौत 1।
पेट दर्द से 2 की मौत।
पेटदर्द-उल्टी से 1 की मौत।
मलेरिया से 1 मौत।
उल्टी+श्वसन नली में अवरोध से 1 मौत।
नाक से खून निकलने से 1 मौत।
गले में दर्द से 1 मौत।
क्यों नहीं बनाया गया स्मार्ट कार्ड-
बैगाओं की मौतें इस लिए हुईं क्योंकि उनको उचित इलाज नहीं मिल सका। ऐसे में सरकार की स्मार्ट कार्ड योजना के क्या मायने? सरकार ने उन गरीबों का स्मार्ट कार्ड क्यों नहीं बनाया?
सवालों के घेरे में सरकारी दवाएं-
सरकार हर साल करोड़ों रुपए की दवाएं खरीदवाती है। इन दवाओं को इस लिए खरीदा जाता है कि इनका उपयोग गरीब जनता के हित में किया जा सके। ऐसे में इन बैगाओं की मौत ने ये सवाल भी खड़ा कर दिया कि आखिर सरकारी दवाएं कौन खा गया?
असल आंकड़ों को लेकर भी सवाल-
ये आंकड़े खुद वहां के स्वास्थ्य विभाग ने उपलब्ध कराए हैं। ऐसे में ये सरकारी आंकड़े हैं अगर पड़ताल की जाए तो और भी बैगाओं की मौत के मामले सामने आ सकते हैं। ये आंकड़े तो उनके होंगे जो सौभाग्य से अस्पताल की दहलीज तक पहुंच गए थे।
सवाल सुनते ही कलेक्टर ने काट दी लाइन-
कबीरधाम के कलेक्टर धनंजय देवांगन से जब इस बारे में सवाल किया गया । तो सवाल सुनने के बाद ही उन्होंने तत्काल लाइन काट दी। उसके बाद लगातार घंटियां बजती रही मगर उन्होंने फोन नहीं रिसीव किया। जब ऐसे-ऐसे कर्णधार जिस जिले में होंगे तो उसका बंटाधार आखिर कैसे नहीं होगा?



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