रेल कॉरिडोर बनेगा हाथियों की नई कब्रगाह


राज्य में अब तक मर चुके हैं कुुल 42 हाथी, हाथियों के हमले में गई 98 लोगों की जान

रायपुर/ रायगढ़/बिलासपुर।
क्यों होता है हाथियों का इंसानों से टकराव-
वनों के कटाव और घने वन क्षेत्रों में इंसानों की दखलंदाजी ही इसका प्रमुख कारण है। हाथी अपने क्षेत्र में इंसानों की पैठ बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करते हैं। बढ़ते शहरीकरण के कारण इंसान अब जंगलों की ओर बढ़ चला है।
क्या कहते हैं वन विभाग के आंकड़े-
वन विभाग द्वारा सूचना के अधिकार में दिए गए आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक जिले के दो वन परिक्षेत्र हैं।  धरमजयगढ़ और घरघोड़ा जिसमें धरमजयगढ़ वन परिक्षेत्र में 2001 से लेकर अब तक 31  हाथियों की मौत हुई है।  वहीं हाथियों के हमले से 74 लोगों की मारे जा चुके हैं।
रायगढ़ वन मण्डल में आंकड़ा इससे कुछ कम है वही 11 हाथी और 24 लोग मारे जा चुके हैं।  वहीं 18 हजार से अधिक किसान हाथियों के आतंक से प्रभावित हुए साढ़े तीन करोड़ का मुआवजवा वितरण किया जा चुका है। यही हाल रहा तो हाथी डायनोसोर की तरह विलुप्त हो जाएंगे।  पर्यावरण को बचाने में महति भूमिका निभाने वाले वन्य जीव अब अकाल काल के गाल में समा रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ी हाथी, शेर, चीता, के साथ -साथ खरगोश भालू के विषय में सिर्फ किताबी ज्ञान ले सकेगें।  यंू कहें कि जिले में अनुसूचि एक के वन्य जीव डायनासोर की तरह विलुप्त हो जाएंगे।
10 हजार हेक्टेयर पर कब्जा-
जिले के 10 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर उद्योग, कोल माइंस, फैक्ट्रियां कॉलोनियां बस गई जंगलों पर इंसान के घुसपैठ ने जंगली हाथियों के घर को उजाडऩा शुरू कर दिया है। वनांचल क्षेत्र कापू,धरमजयगढ़,घरघोड़ा,जुनवानी,तराईमाल,तमनार लैलूंगा ,छाल,बंगूरसियां क्षेत्र में हाथियों का जोरों से आतंक है।  यहां के दर्जनों ग्रामीणों की जान हाथियों ने ले ली। यहां तक के वर्ष 2015 में 7 सितम्बर को चीनी नागरिक को हाथी ने रौंद कर मौत के घाट उतार दिया था।  जिले में हाथियों के अलग-अलग दल हैं।  लगभग 70 से अधिक हाथियों ने यहां के वनों में अपना स्थाई बसेरा बना लिया है। बचे हुए हाथी उड़ीसा और झारखण्ड से भी आते रहते हैं।  जो प्रवासीय हाथी है।  रेल कॉरिडोर परियोजना वन घने वनों से होकर गुजर रही है, जो आने वाले दिनों में एक बड़ी परेशानी का सबब हाथियों के लिए बन सकती है।


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