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ग़ज़ल
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सितमगर गर कहीं मंज़र बदल जाए तो क्या होगा! मेरा सर और तेरा खंज़र बदल जाए तो क्या होगा!! अमीरों कम से कम ताने तो मत दो इन फ़क़ीरों को! अगर सोचो कहीं ये दर बदल जाए तो क्या होगा!! अभी तो तुम चले आए हो इतने तैश में लेकिन! मेरा शीशा तेरा पत्थर बदल जाए तो क्या होगा!! मियाँ इन सलवटों में तुम सुबूतों को छिपाते हो! अगर सोचो कहीं बिस्तर बदल जाए तो क्या होगा!! "कपूत" ये मेरी खुद्दारी और तहरीर की तल्खी! मैं डरता हूँ कहीं तेवर बदल जाए तो क्या होगा!! कपूत प्रतापगढ़ी हास्य कवि और व्यंग्यकार