ये फक्कड़पन और अक्खड़पन
कलम की नोंक दबाकर लिखने की आदत ने नाक तो ऊँची की मगर पता नहीं कितने हमले भी करवाए! इस सफ़र में कितनों ने किनारा किया तो कितनों से मजबूरन किनारा करना पड़ा! इतना सब कुछ होने बहुत पाने और कुछ खोने के बाद भी न हम बदले और न हमारी लेखनी! ये फक्कड़पन और अक्खड़पन और उम्र के साथ हावी होता भुलक्कड़पन क्या-क्या दिखाएगा ऊपरवाला जाने!