भगवान से बड़ी कविता....लिखने वाले आप बहुत याद आ रहे हैं!
मित्रों.....कोलकाता के हिन्दी के जानकारों के लिए सिर्फ़ दादा कह देने मात्र से जो एक अक्स उभर कर सामने आता था, वो पंडित छविनाथ मिश्र ..... जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी कविता के नाम कर दी! आज सुबह से ही उनकी याद आ रहे है!---
मेरे दोस्त.. मेरे हमदम, तुम्हारी कसम
कविता जब किसी के पक्ष में अथवा विपक्ष में
अपनी पूरी अस्मिता के साथ खड़ी होती है तो वो भगवान से भी बड़ी होती है!!
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