पत्रकारिता की पीड़ा


पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अब जिस तरह से पूंजीवादी लोगों की पकड़ बढ़ती जा रही है वही निष्पक्ष पत्रकारिता को ख़त्म कर रही है.वहीं इस क्षेत्र में कुछ ऐसे लोग भी आ गे हैं जिनका इससे दूर-दूर तक कोई ताल्लुक नहीं है. जाहिर है ऐसे लोग महज अपनी हनक दिखाने के लिए अपनी लाक्सारी गाड़ियों पर आराम से प्रेस लिखवा कर मजे से घूम रहे हैं. कुछ लोग उन्हीं को बड़ा पत्रकार मानकर सलाम भी ठोंक देते हैं. जबकि अगर एक इंट्रो लिखने को दे दिया जाए तो साहब के पैंट ढीली हो जायेगी. जो इसके जानकार हैं उनकी पूंछ परख दिनों दिन कम होती जा रही है. शायद यही कारण है की पत्रकारों की दशा बंधुआ मजदूरों से भी बदतर है. यहाँ बस एक ही चीज बची है दलाली अगर आप वह कर सकते हैं तो फिर आपका स्वागत है आप आइये पत्रकारिता जगत में. वरना अगर इसको मिशन समझते हैं तो हुज़ूर भूल जाइए अब न तो वे अखबार रहे न वे सम्पादक अगर कहीं हैं भी तो वे भी अपना स्तित्वा बचाने के लिए जंग लड़ रहे हैं. पत्रकारिता खोखली हो चली है. ऐसे में इस पोल में रहकर अगर आप खुद को सुरक्षित महसूस कर सकते हों तो करें मुझे तो लगता है की गलत जगह में आकर फंस गया.

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