पत्रकारी में भी ठेकेदारी



पत्रकारिता के जन्म दिवस पर ग़मगीन ह्रदय से आप सभी कलमकारों का आभारी हूँ। दरअसल पत्रकारिता की काफी पहले मौत हो गई और उसकी लाश के अंत्यपरीक्षण के कुछ दृश्य आपके सामने दिखाई भी दिए होंगे। अगर नहीं तो चलो हम ही बता देते हैं। पत्रकारिता की हत्या के पीछे कुछ पत्रकारों का ही योगदान रहा। जो खुद तो गले तक रसमलाई ठूंसे बैठे हैं और दूसरों को ये उपदेश देते हैं की तुम व्रत रखो ये बड़ा पुनीत कार्य है। सच को सच कहने का माद्दा ख़त्म हो गया है। अब पत्रकार समाचार लिखता नहीं बल्कि वाणिज्यिक विभाग के कुछ चपल और मतलब परस्त लोगों के दबाव में लिखवाया जाता है, इसमें भाषा को महज भूसी समझ जाता है। साहित्य की बात यहाँ भूलकर भी मत करना वरना पत्रकार जी भड़क जायेंगे और बीस मिनट का नॉन स्टाप भाषण दे डालेंगे। तनख्वाह कम से कमतर होती चली जा रही है और नै सूचना आपको दिए देता हूँ की यहाँ अब कुछ तकनीकी कार्य ठेके पर भी शुरू हो चुका  है। अब पत्रकारी भी ठेकेदारी पर चल रही है। ऐसे ठेकेदार जिनके अगल बगल दम हिलाते घूम रहे हैं चाटुकार और भैया जी को बताते  फिर रहे हैं बड़ा पत्रकार ?
अब ऐसे तथाकथित पत्रकारिता  के भीष्म पितामह की सच्चाई भी देख ली जाए ? तमाम मीडिया पटु और व्यवसाइक प्रबंधन के पुरोधा मिलकर   २ ४ घंटे मेहनत करके एक अखबार निकलते हैं। और एक आठवीं फेल रिक्शे वाला उसको पांच मिनट में फेल कर देता है। वो भी दिन था जब अखबार पढ़ने वाले दिन-दिन भर पिले  रहते थे।

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