पाप बनता झोलाच्छप


किताबें और ग्यान भी अब सरकार की बपौती बनते जा रहे हैं! कौन कहे पहुँच विहीन क्षेत्रों में दवाएँ और चिकित्सक उपलब्ध करवाने को, सरकार वहाँ से झोलाच्छाप डॉक्टर्स को गिरफ्तार करने जा रही है! सवाल उठना लाज़िमी है की क्या हमारी पारंपरिक चिकित्साओं को भी सरकारी आदेश की आवश्यकता पड़ेगी? किताबें और ग्यान सरकार की बपौती हैं? दुर्भाग्य का विषय है कि इस देश में एक डाकू को सांसद तो बनाया जा सकता है मगर जो मन
 से जनता की सेवा करना चाहता है उसको सलखों के पीछे पहुँचने पर सरकार क्यों आमादा है? क्या हर सरकारी डाक्टर ढंग से इलाज कर रहा है? यह एक कड़वी सच्चाई है की  आज भी दूर-दराज के गाँवों में ऐसे-ऐसे झोलाच्छाप डाक्टर हैं जिनके आगे डिग्रीधारी पानी भरते नज़र आते हैं! यही जलन का कारण भी है की जो काम ये डिग्री लेकर नहीं कर पाते उसको बेहतर एक गैर डिग्रीधारी कर रहा है! और बाप की कमाई के २५ लाख रुपये खर्चा करने के बाद भी एक एमबीबीएस भूखों मार रहा है?
सबसे बड़ा सवाल की क्या किसी की सेवा करना पाप है? झोलाच्छप होना क्या कोई कलंक है? एक एमबीबीएस अगर मरीज को मार डाले तो जायज़ और एक गैर डिग्रीधारी मारे तो नाजायज़? ये कहाँ की रणनीति है भाई?



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