सीताफल के बीज से कैंसर व डायबिटीज पर कंट्रोल संभव
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। बिलासपुर विश्वविद्यालय यूटीडी के माइक्रोबायोलॉजी और बायोइनफॉरमेटिक्स विभाग के प्रोफसरों ने कैंसर व डायबिटीज को कंट्रोल करने का तरीका ढूंढ लिया है। उनके शोध के मुताबिक सीताफल का बीज रोगों से लड़ने की शक्ति यानी इम्युन सिस्टम को बढ़ाता है।
इसके सेवन से कैंसर व डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है। इस शोध के परिणाम को पेटेंन कराने का प्रयास चल रहा है। इसके बाद दवा तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
माइक्रोबायलॉजी एवं बायोइनफॉरमेटिक्स विभाग के एचओडी और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डीएसवीजीके कलाधर ने बताया कि छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, ओडिसा और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों के फल और पौधों पर काफी समय से शोध चल रहा था। इसमें पता चला कि सीताफल के बीज से इम्युन सिस्टम को तेजी से बढ़ाया जा सकता है। यह कैंसर और डायबिटीज को कंट्रोल करने में काफी कारगर होगा। वहीं, सीताफल का खाया जाने वाला भाग उतना कारगर नहीं है।
बीज में कई गुण
सीताफल के बीज मेकई गुण हैं। इसमें प्राकृतिक एंटीअक्सीडेंट विटामिन सी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। विटामिन सी में शरीर के इम्युन सिस्टम को बढ़ाने की क्षमता होती है। यह एनर्जी का भी अच्छा स्त्रोत होता है। बीज में विटामिन बी भरपूर होता है। इससे दिमाग शांत रहता है।
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साथ चिड़चिड़ेपन से बचाकर निराशा को दूर रखता है। खून की कमी यानी एनीमिया से बचता है। सीताफल के बीज में मौजूद मैग्नीशियम शरीर में पानी को संतुलित करता है। इसमें सोडियम और पोटेशियम संतुलित मात्रा में होते हैं। यह खून का बहाव यानी ब्लड प्रेशर में अचानक होने वाले बदलाव नियंत्रित करता है। इसके अलावा इसकी मदद से प्रकार की शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है।
विशेषज्ञों ने की सराहना
सीताफल के बीज पर किए गए इस शोध को विदेशों में भी सराहा गया है। पेंड्रा, अंबिकापुर, कांकेर और रायपुर के कुछ बगीचों से लाए गए सीताफल के बीजों पर रिसर्च किया गया। सबसे पहले शोध का परिणाम गीतम यूनिवर्सिटी आंध्र प्रदेश भेजा गया। इसके बाद इस पर क्रोएशिया में सेमिनार भी हुआ। इसमें देश-विदेश के तकरीबन दो दर्जन विशेषज्ञ मौजूद थे। सभी ने रिसर्च की सराहना करते हुए शोध के आधार पर दवा तैयार करने पर जोर दिया।
सीताफल के बीज से कैंसर व डायबिटीज को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। माइक्रोबायोलॉजी के सभी प्रोफेसरों ने रिसर्च में योगदान दिया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। शोध के परिणाम को पेटेंन कराने के लिए प्रयास किया जा रहा है। इसके बाद दवा बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी।
डॉ. डीएसवीजीके कलाधर,
एचओडी, माइक्रोबायलॉजी एवं बायोइनफॉरमेटिक्स विभाग
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